SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीगुणचंद परिमुक्कगजिघोरट्टहासहयविरहियहिययवावारो । वरिसायालो यालदारुणो झत्ति संपत्तो॥२॥ सोमविमहावीरच. तं च दट्टण सो सुमरियनियकलत्तो तत्कालवियंभमाणनीलकंठरवसवणचउग्गुणीकय उकंठो दीहं नीससिऊण चलिओप्रस्य प्रवा५प्रस्ताव अविलंबियपयाणगेहिं सनयराभिमुहं, अइदूरत्तणेणं मग्गस्स दुबलत्तणओ सरीरस्स असमत्थत्तणेणं सिग्धगमणस्स | सावस्था. ॥१४२॥ मासपंचमपजंते संपत्तो कुंडग्गामे नगरे, पविट्ठो नियगिहे, संभावियविढत्तदद्याए अन्भुट्टिओ पणइणीए, दिण्णं आसणं, पक्खालिया चरणा, पुच्छिओ सरीरकोसलं, वाहियं सरीरं, दंसिओ पणयभावो, भोयणकाले य उवट्ठाविया य कंठिगाइ हट्टे विणियट्टिऊण विचित्ता रसवई, काराविओ भोयणं, तदुत्तरकालं ठिओ सयणिजे, बंभणीवि मापहिहियया समीवमागया तस्स, आरद्धा य पुच्छिउँ, जहा-अजपुत्त! केसु केसु देसंतरेसु परिभमिओ एत्तियं || कालं ? केत्तियं वा दविणजायमजियंति ?, तेण भणियं-पिए! केत्तिए साहेमि देसे ?, किं वा कहेमि दविण-14 जणं? तहाहिसिरिपवयवइरागरसमुद्दपरतीररोहणगिरीसु । रसकूविगासु विवरेसु भुयंगभीमेसु विविहेसु ॥ १ ॥ भमिओ एत्तियकालं दबपियासाए णेगठाणेसुं । विहिओ य खन्नवाओ धमिया य सुवण्णपाहाणा ॥२॥ ॥१४२॥ अंजणसिद्धिनिमित्तं दिवोसहिणो निरूविया बहुसो । विहिया नरिंदसेवा वियाणिया मंततंताई ॥३॥ असिचावकुंतचक्काइएसु सत्थेसु जणपसिद्धेसु । पकओ परिस्समोविहु किं किं अहवा मए न कयं? ॥४॥ COCCCCCCIENCECRECECOGNECTED Jain Educat i onal For Private Personel Use Only R jainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy