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________________ हिं भगवया, कहकहवि निरुद्धवाहप्पवाहा य तकालचउग्गुणीभूयं संताववेगं निरंभिऊण भणिउमाढत्ता-अहो परमे-- सर! करुणापरो हवसु अम्ह जीवियचे, परिहरसु संपयं सवविरइवछं, एयपि काऊण तुमए पाणिणो रक्खणिजा, ते |य जइ पढमंपि दुस्सहविओगकरवत्तभिजमाणहियया रक्खिजिस्संति ता किमजुत्तं होजा?, तुम्हहिं रहिया नूणं अवगयलोयणच अमुणियगम्मागम्सविभागा वइदेसिगा इव अणाहा खणमेत्तंपि न संधीरेमो अप्पाणंति, भगवया भणियं-जइ एवं ता सम्ममालोचिऊण भणह-केत्तियकालेण तुम्भे ममं दिक्खागहणत्थमणमन्निस्सह ?, तेहिं ६ भणियं-संवच्छरदुगेणं अइगएणंति, भगवया जंपियं-एवं होउ, परं मम भोयणाइसु न तुम्हहिं विसेसचिंता कायवा, तेहि भणियं-एवं करिस्सामो, तओ तहिणाओ आरब्भ परिचत्तसवसावजवावारो सीओदगपरिवजणपरायणो फासुयाहारभोई दुक्करवंभचेरपरिपालणपरो परिमुक्कण्हाणविलेवणपमुहसरीरसक्कारो फासुओदगेण कयहत्थपायपक्खालणाइकायचो जिणिंदो ठिओ वरिसमेगं ॥ तहिं चपरिमुक्काभरणोऽविहु ण्हाणविलेवणविवजिओऽवि जिणो । जुगबुग्गयबारससूरतेयलच्छि समुबहइ ॥१॥ सयणोवरोहणेहेण धरियगिहसरिसवज्झवेसोऽवि । लक्खिजइ जयनाहो संजमरासिव पचक्खो॥२॥ सा कावि गिहगयस्सवि जिणस्स मज्झत्थया पवित्थरिया।जा निग्गहियमणाणवि मुणीण चित्तं चमक्केइ ॥३॥ अह वच्छरपजंते तिलोयचूडामणी महावीरो। वारिसियमहादाणं दाउं परिचिंतए जाव ॥४॥ CHEMICCRACCORRORSCOCOCCU Jain Educat onal For Private & Personel Use Only NMainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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