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________________ श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १३० ॥ निवडतछत्तधयचिंधनिचयसंछन्नमेइणीवहं । उत्तट्ठसहत्थिविहम्ममा गनियपवरपरिवारं ॥ ३ ॥ करितुरयघायनिस्सरियरुहिरपूरिज्ज माणमहिगत्तं । रणतूररवुन्नच्चिरकबंधपेच्छणय भीसणयं ॥ ४ ॥ इय घोरसमरवावार मे कहेलाए काउमचिरेण । सिरिसमरवीररण्णा बद्धो सो नागपासेण ॥ ५ ॥ भणिओ य सुमर रे इट्ठदेवयं एस वट्टसि जमस्स | संपइ पाहुणगो तं दुच्चरियरहंमि आरूढो ॥ ६ ॥ दुज्जोहणेण भणियं भो नरवर ! कीस वाहरसि एवं ? । पारंभे चिय समरस्स सुमरणिजं मए सरियं ॥ ७ ॥ नियकुल कमाणुरूवं अणुचेटुसु संपयं विगयसंको । देहेण कथं देहोऽवि सहउ को एत्थ अणुतावो १ ॥ ८ ॥ एवं च आयन्निऊण पडिवन्नकरुणाभावेण समरवीररन्ना नीओ नीयमंदिरं, उच्छोडिया बंधा, काराविओ व्हाणभोयणाइयं, समप्पियाई समरगहियाणि करितुरयाईणि, तेणावि अंगीकया सेवावित्ती, तओ जाओ राइणो परमसंतोसो, पसरिओ चाउद्दिसिं जसोत्ति, भणियं च रन्ना -- अहो मम इमीए कन्नगाए पसवकालेऽवि एरिसो जसो दिण्णो, तम्हा होउ एयाए जसोयत्ति जहत्यभिहाणंति बुत्ते महया रिद्धिसमुदएणं कयं एवमेव से नामं । अह सा चंदलेहच बह्वंती पत्ता कमेण जोधणं, अन्नया पुट्ठो राइणा नेमित्तिओ को इमीए पाणिग्गाहो भविस्सइत्ति ?, | तेणावि साहियं-देव ! सिरिवच्छलंछियवच्छयलो सयलसुरासुरनमियकरकमलो अट्ठसहस्स लक्खणधरो पुरिसप्पवरो निच्छियं एयाए पई होहित्ति, एवं निसुनिए ठिओ नरिंदस्स हियए तुम्ह कुमारो, तओ आहूओ मेघनाओ नाम सेणावई। Jain Education Donal For Private & Personal Use Only समरवीरदुर्योधनयुद्धं ॥ १३० ॥ nelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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