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________________ Jain Education विपक्खदप्पखंडणो नरिंदवंसमंडणो, अजायभंगसासणो कुनीइलोयनासणो । असेससोक्खकारणं करेइ लोयपालणं, नरिंदसत्तुमद्दणो म (ज) णंमि चित्तनंदणो ॥ ३४ ॥ जंमि य नराहिवे पवलवलसालिभुयपरिहारोवियधरणिभारे रायनीइमेत्तं मंतिणो सोहा हरिकरिरहजोहसामग्गी आर्डवरं असिचक्कचाव सरकुंतप्पमुहपहरणपरिग्गहो सेवगा पणयावेक्खा सजीय निरवेक्खंगरक्खपरिक्खेव परिकष्पणा । तस्स य रण्णो विसिट्ठायारपरिपालणपरायणो धम्मसत्थसवणवियाणिग्रहे जोवा देयवत्थुसरूवो गंभीरिमाइगुणगणावासो पयइसरलो पयइविणीओ पयइपियंवओ पयइपरोवयारपरो पुहइप्परट्ठाणनामंभि गामे नयसारो नाम गामचिंतगो अहेसि । जो य तहाविहसाहुसेवाविरहेऽवि अलसो अकज्जववित्तीय परम्मुहो परपीडाए सयण्हो गुणगणोवजणाए अचक्खू परछिद्दपलोयणाए । एवंविहगुणो य सो सविसेसगुणुक्क रिस साहणनिमित्तं भणिओ गुरुअणेण, जहा - धणरिद्धी दूरं वड्डियात्रि दुधिणयपवणपरिहणिया । एकपएचिय पुत्तय ! पणस्सए दीवयसिहच ॥ ३५ ॥ णीहारहारधवलविवच्छ ! सेसो गुणाण संघाओ । विणएण विणा वयणं व नयणरहियं न सोहेइ ॥ ३६ ॥ अपिओsa परोवारकारीवि भुयणपयडोऽवि । वज्जिज्जइ पुरिसो विषयवजिओ गुरुभुयंगोव ॥ ३७ ॥ दुणियत्तणदोसनिवहमवलोऊण बुद्धीए । पुत्त ! रमेज्जसु विणए समत्थकलाणकुलभवणे ॥ ३८ ॥ तहाहि - विणणं हुंति गुणा गुणेहिं लोगोऽणुरागमुचद्दइ । अणुरत्तसयललोयस्स हुंति सञ्चाओ रिद्धीओ ॥ ३९ ॥ ipnal For Private & Personal Use Only ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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