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________________ जह वा महल्लकोऊहलेण एत्थागया तहा सर्व । अक्खाणयमप्पणर्ग उवइ8 लहुगभाउस्स ॥५॥ I एयं च कहिजमाणमामूलाओ निसुणियं समग्गमवि समीवदेससंठियाए सीलमईए, तओ अपुवं अणाइक्वणिज 1 केवलमणुभवगम्मं नियसुयसाहियवइयरपरिन्नायसमुत्थहरिसपगरिसमुवहंती समुच्चरोमंचुचाइयकंचुया सुयसिहवसपगलंतथणमुहसुद्धदुद्धधारा एह चिरकालपत्तगा पुत्तगा! नियजणणि गाढमालिंगहत्ति भणंती गया तेसिं पचासन्नं, निवेइओ पुत्ववित्तंतो, विन्नाया जेट्टपुत्तेण, तओ गाढं कंठमवलंबिय चिरविरहदुहावेगसूयगविसंतुलवयणगम्भ || निन्भरं सपुत्तावि रोविउं पवत्ता, विनायपरमत्थेण मुहुत्तमेत्तं विलंबिय समासासिया कुमारपरियणेण, अह उग्ग-18 यमि दिणयरे परियणमझाओ एगेण पुरिसेण तुरियं गंतूण भणिओ नरविक्कमो-देव! तुम्ह दइया कुमारेहिं एयस्स चेव नावावाणियस्स जाणवत्ते पत्तत्ति, तओ हरिसभरनिभरहियएण सविम्हयं पुच्छिओ राइणा एसो-भह! को एस वुत्तोत्ति?, तेणवि संजायभएण भणियं-देव! वियरसु मे अभयदाणेणप्पसायं जेण जहा वित्तं निवेएमि, पडिवन्नं नरिंदेण, तओ पढमाणुरागाओ आरम्भ जाणवत्तारोवणकंदणोवलोभणदेवयाभेसणप्पमुहो साहिओ नीसेसो वृत्तंतो, एयमायन्निऊण य नरवइणा समग्गधणजाणवत्तसहिओ निविसओ आणत्तो सो वाणियगो, सीलमईवि देवी || करेणुगाखंधगया धरियसियछत्ता चामरेहिं वीइजमाणी पए पए पडिच्छंती नयरजणकयं पूयासकारं ठाणे ठाणे वियर-21 18|माणा दीणाणाहाण कणगदाणं पवेसिया परमविभूईए निययमंदिरं, काराविओ पुरे अढदिवसिओ महसवो, अह81 Jain Educ a tional For Private Personal use only M ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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