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________________ मनं. श्रीगुणचंद रवणी ता अणुजाणह ममं गमणायत्ति, राइणावि पिययमाविजोगविहुरेण एस चेव जज दीहरनिसाए विणोयकारी देहिलव. हवउत्ति परिचिंतयंतेण भणिओ सो-भद्द! बीसत्यो इहेब चिट्ठसु, नियपहाणपुरिसेहिं रक्खावइस्सामि तुह जाण-18| णिजो जय४ प्रस्ताव: Iवत्तं, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण पडिवन्नं तेण, विसज्जिया य राइणा नियपहाणपुरिसा पवहणरक्खणत्यं, एत्यंतरे से न्यामाग॥१०५॥ उट्ठिया दोवि कुमारा, विनत्तं च तेहिं, जहा-ताय! अदिठ्ठपुवं अम्ह पवहणं, गाढं च कोउयं तइंसणे, ता अणु-18 ६ जाणउ ताओ जेण गच्छामोत्ति, तन्निच्छयमुवलन्भ अणुनाया य नरिंदेण, गया य अंगरक्खनरपरिक्खित्ता ते जाण-4 वत्ते, तं च इओ तओ निरिक्खिऊण पसुत्ता तत्थेव । अह पच्छिमरयणिसमए पडिबुद्धा परोप्परं वत्ता काउमारद्धा, खणंतरेण लहुएण भाउणा पुट्ठो जेहो माया-अहो भाय! कहसु किंपि अपुवं अक्खाणयं, इह ट्ठियाण न झिजइ कहमवि विभावरी, जेट्टभाउणा भणियं-भद्द! किमन्नेण अक्खाणयसवणेण!, एयं चिय अप्पणोतणयं अक्खाणयमपुवं निसुणेहि, तेण जंपियं-एयमवि साहेहि, तओ करकलियकुसुममाला जह जणणी रायमग्गमणुपत्ता । जह वलिया नो पुणरवि जह नयरे मग्गिया बहुसो ॥१॥ ॥१०५॥ जह ताओवि दुहत्तो अम्हेहिं समं गओ नईकूले । जह परतीरनिरूवणकएण सलिलंमि ओगाढो ॥२॥ जह सरियनीरपूरप्पवाहिओ दूरदेसमणुपत्तो । जह अम्हे गोउलिएण गोउलं पाविया विवसा ॥३॥ जह बुर्हि संपत्ता रायउले जह गया तओ अम्हे । रायावलोयणत्थं जह विनाया य ताएणं ॥४॥ AAAAAAAR CXXX Jain Educat Arainelibrary.org For Private Personal Use Only onal
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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