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________________ 18 देवी चंपयमाला, पुट्ठा य सा आगमणपओयणं, भणियं च तीए-देव ! अज पच्छिमद्धजाम सेसरयणीए सुहपसु-18 ताए सुमिणमि सहसचिय वयणमि पविसमाणो मए अनणुप्पमाणो मणिरयणमालालंकिओ पवणसमुदुयंचला-हू भिरामो फलिहमयडिंडिरपंडुरडंडोबसोहिओ महज्झओ दिट्ठो, एवंविहं च अदिट्ठपुवं सुमिणं पासिऊण पडिबुद्धा समाणी समागया तुम्ह पासंसि सुमिणसुभासुभफलजाणणत्थं, ता साहिउमरिहइ देवो एयस्स फलंति, रन्ना भणियं-देवि ! विसिट्ठो तए सुमिणो दिट्ठो, ता निच्छियं होही तुह चउसमुद्दमेहलावलयमहिमहिलापइस्स कुल-18 केउस्स पुत्तस्स लाभो, जं तुम्भे वयह अवितहमेयंति पडिवजिय निबद्धा देवीए उत्तरीयंमि निढुरा सउणगंठी, है खणंतरं च मिहोकहाहिं विगमिय गया देवी निययभवणं, रायावि कयपाभाइयकायचो निसण्णो सभामंडवंमि अह पढममेव गाढकोउहलाउलिजमाणमाणसा समागया बुद्धिसागरपमुहा मंतिणो, भूमितलविलुलियमउलिमंडला निवडिया चरणेसु, दिन्नासणा निविट्ठा सट्ठाणेसु, विनविउमाढत्ताय-देव! अज चउजामावि सहस्सजामव कहमवि पभाया अम्ह रयणी घोरसिवमुणिवइयरोवलंभसमूसुगत्तणेणं, जइविकिपि पसंतवयणावलोयणाइलिंगोवगया कज्जसिद्धी बट्टइ तहावि विसेसेण तुम्भेहिं साहिजमाणिं सोउमिच्छामो, ता पसियउ देवो रयणिवइयरनिवेयणेणंति, ताहे तेसिं| वयणाणरोहओ ईसिं विहसियं काउं जहा घोरसिवेण समं मसाणदेसंमि संपत्तो जह विनाओ छोभमायरमाणो जहा य सो भणिओ गिण्हसु सत्थं जह तेण कत्तिया वाहिया कंठे जह पडिरुद्धो बाहू सकत्तिओ जह महीयले ALSOMAMMOREOSASUR For Private Jain Educatollinational djainelibrary.org Personal Use Only
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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