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________________ तो तंमि समारूढो हरिकरिपाइक्कचक्कपरियरिओ। वीसत्थो पवणवसुल्लसंतसुमहलकल्लोलं॥२॥ गोपयमिव सिंधुनई लंघित्ता मेच्छजाइए सक्छ । आणानिइसे संठवेइ रयणाई गिण्हेइ ॥ ३ ॥ सामी! तुम्हे सरणं गई य एमाइ जंपमाणे ते । ठविउं सहाणेसुं विणियत्तइ विजयसेणो तो॥४॥ पियमित्तचक्कवहिस्स पायपंकयजुयं पणमिऊण । रयणाई समप्पइ सो मिलक्खुविजयं च वजरइ ॥५॥ पुणरवि रण्णा भणिओ सेणाहिवई जहा तुम भइ ! । गच्छसु तिमिसगुहाए कवाडउग्घाडणत्याए ॥ ६॥ ताहे तहत्ति सम्म पडिसुणिऊणं समग्गबलकलिओ। गंतुं गुहासमीवे अट्ठमभत्तं तवो कुणइ ॥ ७॥ __ अह तिक्खुत्तो पहणइ निविडेणं तिवदंडरयणेणं । ते तिमिसगुहाकवाडे महप्पमाणे वइरघडिए ॥ ८॥ है दंडाभिधायपरिपेलियाई कुंचारवं करेंताई । कुकलत्तकहियगुझं व ताई विहडंति वेगेण ॥ ९॥ ॐ तयणंतरं च वलिउं साहइ सो चक्वट्टिणो वत्तं । सोऽवि य गयमारूढो समग्गसेणाएँ संजुत्तो ॥ १० ॥ चउरंगुलप्पमाणं रोगासिवनासणं मणि घेत्तुं । चक्काणुमग्गलग्गो तिमिसगुहं विसइ भयराइओ (महराया) ॥११॥ तत्तो तिमिसगुहंतंधयारविद्धंसणठमइगरुए। मंडलगे सो विलिहइ कागिणिरयणेण भित्तीसु ॥ १२॥ ताहे मंडलगमऊहजालउज्जोयहणियतिमिराओ । नीहरइ सुहेण समं सेणाए सो गुहाहिंतो ॥ १३ ॥ इओ य वेयड्डपरभागवत्तिणो विलाया महापरकमा अपरिभूयसामत्था कणगरययधणधनसमिद्धा नियनियट्ठाणेसु Jain Educat onal For Private & Personal Use Only TIMjainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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