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श्रीगुणचंद महावीरच ० ३ प्रस्तावः
॥ ५९ ॥
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निरूवेह पहारपरव्वसे जोहनिवहे करेह ओसहघायवधारणा परित्ताणं परिमग्गह दुट्टतुरंगमपल्हत्थिए पत्थिवेत्तिसम्मं निउंजिऊण (अंतेउरेण ) समं समग्गनरवइवग्गपरियरिओ समेओ पोयणपुरं, तओ नवरलोएग कयं वैजयंती, सहस्साभिरामं ठाणठाणनिबद्धमंचारूढ विलासिणीनट्टर मणिजं पमुकसुरभिपुष्कपुंजीव यार कलियराय मग्गं पहयपडु| पडहपमुहजय तूरनियरं नयरं पविट्ठो महया विभूइए तिविहू, जहोचियठाणेसु ठिओ सेसो परिवारो । तओ कइवय वासराई तत्थ ठाऊण पुणोऽवि समग्गबलकलिओ चक्कछत्तधणुमणिमालागयासंखरयणपरिगओ निग्गओ दिसि - विजयनिमित्तं तिविहू, कमेण पसाहियं भारहद्धखेत्तं, अपणयपुत्र्वा नामिया पत्थिवा, गाहिया सेवावित्तिं, गहियाई तेहिंती करितुरयरयणपमुहाई पहाणपाहुडाई, एवं च नीसेस मंडलाहिब सहस्साणुगम्यमाणमग्गो पेच्छतो अपुव्यापुव्वनयराई ठाविंतो अंगबंगकलिंगाइसु अन्नन्ननरिंदे पत्तो मगहाविसए, तहिं च दिट्ठा कोडिपुरिसवोज्झा महासिला, साय भुयबलावलेवओ लीलाए वामभुयदंडेण उक्खिविऊण छत्तगं व धरिया सीसोवरिं, अतुलियबलावलोयहरिसुप्फुल्ललोयणेहि य कओ नरवईहिं जयजयारखो, पढियं च मागहगणेहिं, कहं ?--
देव ! मालागा तुझ करो कलियरुंदकोडिसिलो । सिरिधरियधरणिवटुस्स वहइ सेसस्स समसीसिं ॥ १ ॥ तु एवंविहलीलाइएण चित्तं न कंपए कस्स । जइ सव्वहावि पत्थरविणिम्मिओ होज्ज सो न जणो ? ॥ २ ॥ इय मागहिं गप्पयारत्रयणेहिं संधुणिजंतो । मोत्तूगं कोडिसिलं चलिओ राया सपुरहुत्तं ॥ ३ ॥
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त्रिखण्डसाधनं
कोटी शिलोत्पाटनं
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