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________________ Jain Educatio | तु हुइ संतोष । सउकि तणा नवि लागइ गोज्झ, राषइ सउकि ते माणुस रोज्झ ॥ १ ॥ गोरी पुछइ सुगुणजण, ऊभी रायह चउकि । जयको जाणइ ते कहतु, सूला भली कि सउकी ? ॥ २ ॥ सूली एकह कहडउ, सउकी अणंता कह । नितु मरइ नितु मारीइ, पगि पगि हियडा हट्ठ ॥ १ ॥ तदा चन्दनबाला अपवरके स्थिता दध्यौ - मम वीतराग एव शरणं । मम चैवंविधं कर्म समायातं दुष्टं, यतः -नयर भंगिहउं पाइक लिइ, मारगि वहतां माडी | मुइ । ढोर तणी परि मांडी पीठ, वेस विसाहण आवी दीठ ॥ १ ॥ एक वात पणी रूडी हुइ, दोहिलउं छइ पणि | तेहि न लइ । निवरुं थानक पामिउं आज, करसिउं धर्म्मध्याननूं काज ॥ २ ॥ जाणइ नहीं दिवस नइ स्यणि, झरतउ नीर निवारइ नयणि । चन्दन महामंत्र मनि जपइ, तिहु उपवासे करमज खिपइ ॥ ३ ॥ तत्र स्थिता चन्दनबाला दिनं रात्रिं च न जानाति ॥ इतो धनावहः श्रेष्ठी गृहे समागतः पप्रच्छ पत्नीं - भो पत्नि ! पुत्री कुत्र गता ?, [श्रेष्ठी जगौ - ] चन्दनां विना कथं मया भोजनं क्रियते ? | मूला जगौ - छोकरडी वीसावी काय, घडीय इक न रहइ बाहरि पाय । कुण जाणइ ए किहां डमडमइ, कुण जाणइ किहिं सरसी रमइ ॥ १ ॥ आवई छइ छोडाउं उलखिसिइं कोइ एहउ तणा । सगु सणीजउ लेई जाइसि, माहरइ वाहर कोइ धाइसि ॥ २ ॥ तुम्ह मनि घणा, For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600112
Book TitleBharateshwar Bahubali Vrutti Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1937
Total Pages398
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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