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________________ प्र. र. अनु. 3 Jain Education "एओश्रीना दीक्षागुरु अगियार अङ्गना धारक घोषनन्दि क्षमाश्रमण, अने गुरुना गुरु वाचकमुख्य शिवश्री हता. विद्यागुरु महावाचक मुण्डपादना शिष्य मूल नामना वाचकाचार्य हता. एओश्रीनुं जन्मस्थान न्यग्रोधिका गाम, अने कौभीषणि गोत्र हतुं. पितानुं नाम स्वाति अने मातानुं नाम वात्सीगोत्रीय उमा हतुं पोते आर्य शांतिश्रेणिकथी नीकळेली उच्चनागर शाखा [?]मां दीक्षित हता. ए श्री उमास्वाति - वाचक श्रीए गुरुपरम्पराथी प्राप्त करेला आर्हत-उपदेशने भली रीते हृदयमां धारण करीने, तथा दुरागमो ( मिथ्याशास्त्रो) द्वारा हतबुद्धि दुःखित लोकने देखीने प्राणीओना उपर अनुकम्पाथी प्रेराई तत्त्वार्थाधिगम नामनुं स्पष्ट (अर्थनी स्पष्टतावालुं) शास्त्र विहार करतां कुसुमपुर ( बिहार देशना पट्टना - पाटलीपुर ) नगरमां रच्युं.” आम यद्यपि मना समयनो चोक्कस निर्णय थई शकतो नथी, छतां एटलं चोकस छे के एओश्री पूर्वधरोना समयमां थयेला चतुर्दशपूर्वधर होई विक्रमनी पांचमी - छठ्ठी शताब्दीथी पहेला थयेला अति प्राचीन आचार्य छे. पोते ५०० प्रन्थ- प्रकरणना प्रणेता हता. "कौ भीषणिनेति गोत्राह्नानम्, स्वातितनयेनेति पितुराख्यानम्, वात्सी-सुतेनेति गोत्रेण, नाम्ना उमेति मातुराख्यानम् ॥” तत्वार्थ सूत्र - सिद्धसेनीयटीका अंक ७६ शेठ दे० ला०नी, पत्रांक ३२६-२७. माताना 'उमा' अने पिताना 'स्वाति' उपरथी तेओश्रीनुं नाम 'उमास्वाति' विशेष इच्छावालाए दे० ला॰ जैन पुस्तकोद्धार फंडना छपावेला अंक ७६, तत्त्वार्थसूत्रना बीजा भागनो अंग्रेजी प्रवेशक ( इंट्रोडक्शन ) वगेरे जोबुं - २ “थेरे अज्जसंतिसेणिए माढरसगुत्ते"...“थेरेहिंतो णं अज्ञ्जसंतिसेणिएहिंतो माढरसगुत्तेहिंतो एत्थ णं 'उच्चानागरी साहा' निग्गया ।" कल्पसूत्रस्थाविरावलि, शेठ दे० ला० जैन पुस्तकोद्धार फंड अंक ८२, कल्पसूत्र- बारसा सचित्र, पत्राङ्क ६७. ३ “तत्त्वार्थाधिगमाख्यं शास्त्रं भव्य सत्त्वानुकंपया विरचितं स्फुटार्थमुमास्वातिनेति ।" दे० ला०नो अंक ७६ तत्रार्थसूत्र बीजो भाग, पत्रात ३२७. For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600109
Book TitlePrashamrati Prakarana
Original Sutra AuthorUmaswami, Umaswati
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1940
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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