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प्रवचन०
सूत्रे
॥ ४६६ ॥
नव एया। सेहस्स वियारगमे रायणिय पुवमायमणे ॥ १३३ ॥ पुढं गमणागमणालोए सेहस्स आगयस्स तओ । राओ सुत्तेसु जागरस्स गुरुभणियऽपडिसुणणा ॥ १३४ ॥ आलवणाए अरिहं पुत्रं सेहस्स आलवेंतस्स । रायणियाओ एसा तेरसमाssसायणा होइ ॥ १३५ ॥ असणाईयं लद्धं पुषिं सेहे तओ य रायणिए । आलोए चउदसमी एवं उवदंसणे नवरं ॥ १३६ ॥ एवं निमंतणेऽवि य लद्धुं रयणाहिगेण तह सद्धिं । असणाइ अपुच्छाए खर्द्धति बहुं द ंतस्स ॥ १३७ ॥ संगहगाहाए जो न खद्धसद्दो निरूविओ वीसुं । तं खद्धाइयणपए खद्धत्ति विभज्ज जोएज्जा ॥ १३८ ॥ एवं खद्धाइयणे खद्धं बहुयंति अयणमसणंति । आईसद्दा डायं होइ पुणो दत्तसागं तं ॥ १३९ ॥ वन्नाइजुयं उसढं रसियं पुण दाडिमंबगाईयं । मणईङ्कं तु मणुण्णं मन्नइ मणसा मणामं तं ॥ १४० ॥ निद्धं नेहवगाढं रुक्खं पुण नेहवज्जियं जाण । एवं अप्पडिसुणणे |नवरिमिणं दिवसविसयंमि ॥ १४१ ॥ खर्द्धति बहु भणते खरकक्कसगुरुसरेण रायणियं । आसायणा उ सेहे तत्थ गए होइमा चण्णा ॥ १४२ ॥ सेहो गुरुणा भणिओ तत्थ गओ सुणइ देइ उल्लावं । एवं किंति च भणई न मत्थएणं तु | वंदामि ॥ १४३ ॥ एवं तुमंति भणई कोऽसि तुमं मज्झ चोयणाए उ ? । एवं तज्जाएणं पडिभणणाऽऽसायणा सेहे ॥ १४४ ॥ अज्जो ! किं न गिलाणं पडिजग्गसि पडिभणाइ किं न तुमं ? । रायणिए य कहते कहं च एवं असुमणत्ते ॥ १४५ ॥ एवं नो सरसि तुमं एसो अत्थो न होइ एवंति । एवं कहमच्छिंदिय सयमेव कहेउमारभइ ॥ १४६ ॥ तह परिसं चिय भिंदइ तह किंची भणइ जह न सा मिलइ । ताए अणुट्टियाए गुरुभणिअ सवित्थरं भणइ ॥ १४७ ॥ सेज्जं संथारं वा गुरुणो संघट्टिऊण पाएहिं । खामेइ न जो सेहो एसा आसायणा तस्स ॥ १४८ ॥ गुरुसेज्जासंथारगचिट्ठणनिसियणतुयट्टणेऽहऽवरा ।
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२ वन्दन
कम्
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