SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रव० सा रोद्धारे तत्त्वज्ञानवि० २७० ल|ब्धिस्वरूपं गा.१४९२ P -१५०८ ॥४२९॥ पुषधरा १४ । अरहंत १५ चक्कवट्टी १६ बलदेवा १७ वासुदेवा १८ य ॥९३ ॥ खीरमहुसप्पिआसव १९ कोट्टयबुद्धी २० पयाणुसारी २१ य । तह बीयबुद्धि २२ तेयग २३ आहारग २४ सीयलेसा २५ य॥९४॥ वेउविदेहलद्धी २६ अक्खीणमहाणसी २७ पुलाया २८ य । परिणामतववसेणं एमाई हुंति लद्धीओ ॥ ९५॥ संफरिसणमामोसो मुत्तपुरीसाण विप्पुसो वावि (वयवा)। अन्ने विडित्ति विट्ठा भासंति पइत्ति पासवणं ॥ ९६ ॥ एए अन्ने य बहू जेसिं सवेवि सुरहिणोऽवयवा । रोगोवसमसमत्था ते हुंति तओसहिं पत्ता ॥९७ ॥ जो सुणइ सबओ मुणइ सबविसए उ सबसोएहिं । सुणइ बहुएवि सद्दे भिन्ने संभिन्नसोओ सो॥९८॥ रिउ सामन्नं तम्मत्तगाहिणी रिउमई मणोनाणं । पायं विसेसविमुहं घडमेत्तं चिंतियं मुणइ ॥ ९९ ॥ विउलं वत्थुविसेसण नाणं तग्गाहिणी मई विउला । चिंतियमणुसरह घडं पसंगओ पज्जवसएहिं ॥ १५०० ॥ आसी दाढा तग्गय महाविसाऽऽसीविसा दुविहभेया। ते कम्मजाइभेएण गहा चउविहविकप्पा ॥१॥ खीरमहुसप्पिसाओवमाणवयणा तयासवा हुंति । कोट्टयधन्नसुनिग्गलसुत्तत्था कोहबुद्धीया ॥२॥ जो सुत्तपएण बहुं सुयमणुधावइ पयाणुसारी सो । जो अत्थपएणऽत्थं अणुसरइ स बीयबुद्धीओ ॥३॥ अक्खीणमहाणसिया भिक्खं जेणाणियं पुणो तेणं । परिभुतं चिय खिजइ बहुएहिवि न उण अन्नेहिं ॥४॥ भवसिद्धियपुरिसाणं एयाओ हुँति भणियलद्धीओ। भवसिद्धियम ॥४२९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy