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प्रव० सा
रोद्धारे
तत्त्वज्ञा
नवि०
॥ ३४४ ॥
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तस्सव अहो लिहिज्ज काल १ जहिच्छा य २ पयदुगसमेयं । नियइ १ स्सहाव २ ईसर ३ अम्पत्ति ४ इमं पक्कं ॥ ९५ ॥ पढमे भंगे जीवो नत्थि सओ कालओ तयणु बीए । परओऽवि नत्थि जीवो काला इय भंगगा दोनि ॥ ९६ ॥ एव जइच्छाईहिवि परहिं भंगदुगं दुर्ग पत्तं । मिलियावि ते दुबास संपत्ता जीवतत्तेणं ॥ ९७ ॥ एवमजीवाईहिवि पत्ता जाया तओ उ चुलसीई । भेया अकिरियवाईण हुंति इमे सङ्घसंखाए ॥ ९८ ॥ संत १ मसंतं २ संतासंत ३ मवन्त्तव ४ सय अवत्तवं ५ । अस्य अवत्तवं ६ सयवत्तवं ७ (सयसयवत्तवं च सत्त पया ॥ ९९ ॥ जीवाइनवपयाणं अहोकमेणं इमाई ठेविऊणं । जह कीरइ अहिलावो तह साहिज्जर निसामेह ॥ १२०० ॥ संतो जीवो को जाणइ ? अहवा किं व तेण नाएणं ? । सेसपएहिवि भंगा इय जाया सत्त जीवस्स ॥१॥ एवमजीवाईणऽवि पत्तेयं सत्त मिलिय तेसट्ठी । तह अन्नेऽवि हु भंगा चत्तारि इमे उ इह हुंति ॥ २ ॥ संती भावुप्पत्ती को जाणइ किंच तीऍ नायाए ? । एवमसंती भावुप्पत्ती सदसत्तिया चेव ॥ ३ ॥ तह अवत्तवावि हु भावुप्पत्ती इमेहिं मिलिएहिं । भंगाण सत्तसट्ठी जाया अन्नाणि
इ ॥ ४ ॥ सुर १ निवइ २ जइ ३ न्नाई ४ थविरा ५ वम ६ माइ ७ पिइसु ८ एएसि । मण १ व २ का ३ दाणेहिं ४ चउविहो कीरए विणओ ॥ ५ ॥ अट्ठवि चउक्कगुणिया बत्तीस हवंति वेणइयभेया । सवेहिं पिंडिएहिं तिन्नि सया हुंति तेसट्ठा ॥ ६ ॥
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त्रिषष्ट्यधिकशतत्रयी
पाषण्डि
नाम्
गा. ११८८० १२०६
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