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________________ प्रव० सा रोद्धारे तत्त्वज्ञानवि० ॥ ३०७ ॥ Jain Education International ॥ ४० ॥ ओरालविउवातेयकम्मभासाणपाणमणएहिं । फासेवि सङ्घपोग्गल मुक्का अह बायरपरो ॥ ४१ ॥ अहव इमो दवाई ओरालविङ्घतेयकम्मेहिं । नीसेसदवगहणंमि बायरो होइ परि यो ॥ ४२ ॥ दवे सुहुमपरट्टो जाहे एगेण अंह सरीरेणं । फासेवि सङ्घपोग्गल अणुक्रमेणं व गणिजा ॥ ४३ ॥ लोगागासपएसा जया मरंतेण एत्थ जीवेणं । पुट्ठा कमुक्कमेणं खेत्तपरो भवे थूलो ॥ ४४ ॥ जीवो जइया एगे खेत्तपएसंमि अहिगए मरइ । पुणरवि तस्साणंतरि बीयसंमि जइ मरए ॥ ४५ ॥ एवं तरतमजोगेण सङ्घखेत्तंमि जह मओ होइ । सुमो खेत्तपरहो अणुकमेणं नणु गणेज्जा ॥ ४६ ॥ ओसप्पिणीऍ समया जावइया ते य निययमरणेणं । पुट्ठा कमकमेणं कालपरहो भवे थलो ॥ ४७ ॥ सुहुमो पुण ओसपिणी पढमे समयंमि जइ मओ होइ । पुणरवि तस्सानंतरबीए समयंमि जइ मरइ ॥ ४८ ॥ एवं तरतमजोएण सङ्घसमएस चेव एएसुं । जइ कुणइ पाणचार्य अणुक्रमेणं नणु गणिजा ॥ ४९ ॥ एगसमयंमि लोए सुहृमागणिजिया उ जे उपविसंति । ते ऽसंखलोयप्पएसतुल्ला असंखेजा ॥ ५० ॥ तत्तो असंखगुणिया अगणिकाया उ तेसि कायठिई । तत्तो संजमअणुभागबंधठाणाणिऽसंखाणि ॥ ५१ ॥ ताणि मरंतेण जया पुट्ठाणि कमुकमेण सङ्घाणि । भावंमि बायरो सो सुमो य कमेण बोद्धवो ॥ ५२ ॥ 'ओसप्पी' त्यादि गाथाचतुर्दशकं, अवसर्पिणीग्रहणेनोत्सर्पिण्यप्युपलक्ष्यते, ततोऽयमर्थः - अत्रसर्पिण्युत्सर्पिण्योऽनन्ता मिलिताः समु For Private & Personal Use Only १६१ उत्सर्पिणी गा. १०३८ १६२ पुगलपरावर्त्तः गा. १०३९ ५२. ॥ ३०७ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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