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________________ प्रव० सारोद्धारे तत्त्वज्ञानवि० २ वन्दनकद्वारे ५ अधिकारिणः ५अनधिकारिणा द्वारद्वयं ॥२४॥ जिणमयंमि ॥ १०३ ॥ सो पासत्थो दुविहो सब्वे देसे य होइ नायव्यो । सव्वंमि नाणदंसणचरणाणं जो उ पासंमि ॥१०४॥ देसमि य पासत्थो सेजायरऽभिहडरायपिण्डं च । नीयं च अग्गपिण्डं भुंजइ निकारणे चेव ॥ १०५॥ ओसन्नोवि य दुविहो सब्वे देसे य तत्थ सव्वमि । अवबद्धपीढफलगो ठवियगभोई य नायव्वो ॥१०६॥ आवस्सयसज्झाए पडिलेहणभिक्खझाणभत्तहे। आगमणे निग्गमणे ठाणे य निसीयणतुयट्टे ॥१०७॥आवस्सयाझ्याइं न करेइ अहवा विहीणमहियाई । गुरुवयणवला य तहा भणिओ देसावसन्नोत्ति ॥ १०८॥ तिविहो होइ कुसीलो नाणे तह दंसणे चरित्ते य । एसो अवंदणिजो पन्नत्तो वीयरागेहिं ॥१०९॥ नाणे नाणायारं जो उ विराहेह कालमाईयं । दसण दंसणयारं चरणकुसीलो इमो होइ ॥११०॥ कोउय भई कम्मे पसिणापसिणे निमित्तमाजीवी । कक्करुयाइ लक्खण उवजीवइ विजमंताई ॥१११ ॥ सोहग्गाइनिमित्तं परेसि ण्हवणाइ कोउयं भणियं । जरियाइभूइदाणं भूईकम्म विणिद्दिढें ॥ ११२॥ सुविणगविजाकहियं आईखणघंटियाइकहणं वा। जं सासइ अन्नर्सि पसिणापसिणं हवइ एयं ॥११३ ॥ तीयाइभावकहणं होइ निमित्तं इमं तु आजीवं । जाइकुलसिप्पकम्मे तवगण सुत्ताइ सत्तविहं ॥११४ ॥ कककुरुया य माया नियडीए डंभणंति जं भणियं । थीलक्खणाइ लक्खण विजामंताइया पयडा ॥ ११५॥ संसत्तो उ इयाणिं सो पुण ॥२४॥ Jain Education a l For Private Personel Use Only M ainelibrary.org
SR No.600107
Book TitlePravachan Saroddhar Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1922
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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