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________________ प्रव० सा रोद्धारे तत्वज्ञानवि० ॥ १७२ ॥ Jain Educatio वरमावज्जे । तत्थेव अहाकप्पं कुणइ उ जोगं महाभागो ॥ २ ॥” [ तृतीयस्यां पौरुष्यां भिक्षाकालो विहारकालश्च शेषासु चोत्सर्गः प्रायोऽल्पा च निद्रेति ॥ १ ॥ जङ्घाबले क्षीणे अविहरन्नपि न परं ( अपवादं ) आपद्यते । तत्रैव यथाकल्पं करोति योगं तु महाभाग: ।। २ ।। ] १४, १५ ॥ ६९ ॥ इदानीं 'अहालंद'त्ति सप्ततितमं द्वारमाह लंद तु होइ कालो सो पुण उक्कोस मज्झिम जहन्नो । उदउल्लकरो जाविह सुक्कह सो होइ उजहन्नो ।। ६११ ॥ उक्कोस पुव्वकोडी मज्झे पुण होंति णेगठाणाई । एत्थ पुण पंचरत्तं उक्कोसं होइ अहलंदं ॥ ६१२ ॥ जम्हा उ पंचरन्तं चरंति तम्हा उ हुंतिऽहालंदी । पंचेव होइ गच्छो तेसिं उको सपरिमाणं ॥ ६१३ ॥ जा चेव य जिणकप्पे मेरा सा चेव लंदियाणंपि । नाणसं पुण सुते भि क्खायरिमासकप्पे य ॥ ६१४ ॥ अहलंदिआण गच्छे अप्पडिबद्धाण जह जिणाणं तु । नवरं कालविसेसो उउवासे पणग चउमासो ॥ ६१५ ॥ गच्छे पडिबद्धाणं अहलंदीणं तु अह पुण वि. सेसो । उग्गह जो तेसिं तु सो आयरियाण आभवइ ॥ ६१६ ॥ एगवसहीऍ पणगं छब्वीहीओ यगामि कुव्वंति । दिवसे दिवसे अन्नं अडंति वीहीसु नियमेणं ॥ ६१७ || पडिबद्धा इयरेऽवि य एक्केका ते जिणा य थेरा य । अत्थस्स उ देसम्मि य असमत्ते तेसि पडिबंधो ॥ ६१८ ।। लग्गाइसु तुरंते तो पडिवज्जिन्तु खित्तबाहिठिया । गिण्हंति जं अगहियं तत्थ य गंतूण आयरिओ ॥ ६१९ ॥ तेसिं तयं पयच्छइ खेत्तं इंताण तेसिमे दोसा । वंदंतमवंदते लोगंमि य होह परिवाओ For Private & Personal Use Only ७० यथा लन्दिकाः गा. ६११ ર ॥ १७२ ॥ v.jainelibrary.org
SR No.600107
Book TitlePravachan Saroddhar Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1922
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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