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________________ प्रव० सारोद्धारे तत्त्वज्ञानवि० ॥ १६१ ॥ Jain Education भवेत् ॥ १० ॥ १२ ॥ पकामध्यमलामि मासु सततं यो भावयेद्भावनां, भव्यः सोऽपि निहन्त्यशेषकलुषं दत्तासुखं देहिनाम् | avaभ्यस्तसमस्तजैनसमयस्ता द्वादशाप्यादरादभ्यस्येल्लभते स सौख्यमतुलं किं तत्र कौतूहलम् ? ॥ १ ॥ ५७२-५७३ ॥ अथ प्रतिमाः प्रतिपादयति मासाई सत्ता ७ पढमा ८ बिइ ९ तहय सतराइदिणा १० । अहराइ ११ एगराई १२ भिक्खुपरिमाण बारसगं ॥ ५७४ || पडिवज्जइ एयाओ संघयणधिइजुओ महासत्तो । पडिमाओ भाविप्पा सम्मं गुरुणा अणुन्नाओ ॥ ५७५ ॥ गच्छेच्चिय निम्माओ जा पुव्वा दस भवे असंपुण्णा । नवमस्स तइय वत्युं होइ जहण्णो सुआभिगमो ॥ ५७६ ॥ वोसचत्तदेहो उवसग्गसहो जहेब जिणकप्पी । एसण अभिग्गहीया भत्तं च अलेवढं तस्स ॥ ५७७ ॥ गच्छा विणिक्खभित्ता पडिवजह मासियं महापडिमं । दत्तेगा भोयणस्सा पाणस्सवि तत्थ एग भवे ॥ ५७८ ॥ trescent सूरो न तओ ठाणा पर्यपि संचलइ । नाएगराइवासी एगं च दुर्गं च अण्णाए ॥ ५७९ ॥ दुट्ठाण हत्थिमाईण नो भएणं पर्यपि ओसरह । एमाइनियमसेवी विहरह जाऽखण्डिओ मासो ॥ ५८० ॥ पच्छा गच्छमुवेई एव दुमासी तिमासि जा सत्त । नवरं दत्ती वहइ जा सत्त उ सत्तमासी ॥ ५८९ ॥ तत्तो य अट्ठमीया भवई इह पढम सत्तरादी । तीइ चउत्थचउत्थेणऽपाणणं अह विसेसो ॥ ५८२ ॥ उत्ताणगपासल्ली नेसजी वावि ठाण ठाइत्ता । सहउस्सग्गे घोरे For Private & Personal Use Only ६८ करण सप्ततौ प्रतिमाः १२ गा. ५७४.८८ ॥ १६१ ॥ jainelibrary.org
SR No.600107
Book TitlePravachan Saroddhar Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1922
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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