SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ANA SAR चिट्ठइ सेसंपि विलग्गयं बहुकं ॥ २० ॥ दुब्बलियपूसमित्तं पडुच्च एवं अहंपि संजाओ। सुत्तत्थतदुभएहिं आइमकुंभेण सारिच्छो ॥ २१ ॥ जो फग्गुरक्खियमुणी तं पुण पइ तेल्लकुंभतुल्लोऽहं । गोट्ठामाहिलमंगीकाउं घयकुडयलरिसोत्ति ॥ २२ ॥ सुत्तत्थोभयजुत्तो तो तुझं एस होउ आयरिओ । दुव्बलियपूसमित्तो मह वयणेणं महाभागा ! ॥ २३ ॥ तओ गच्छेण होउत्ति पडिवन्ने ठविओ दुब्बलियपूसमित्तो आयरिओ, भणिओ मूरिणा-जहा फग्गुरक्खिओ गोट्ठामाहिलाइणो मए दिट्ठा तहा तएवि दट्ठब्वा, फग्गुरक्खियादओऽवि भणिया-तुब्भेहिवि मम सरिसो अहिओ वा एस नवरि दट्ठव्यो । न य पडिकूलेयत्वं गुणनिहिणो वयणमेयरस ॥ २४ ॥ एवं दुन्निवि वग्गे, संठावेऊण अणसणं काउं। पंचनमोकारपरो, सरी सग्गंमि संपत्तो ॥२५॥ | इओय वासारत्ताणंतरं गोट्ठामाहिलेणं सावगाणं संबोहणत्थं पढियं गाहाजुयलं-उच्छू वोलंति वई, तुंबीओ जायपुत्तमं । डाओ।वसभा जायत्थामा गामा पंथा यऽचिक्खिल्ला॥१॥ अप्पोदगा यमग्गा वसहावि य पक्कमट्रिया जाया। अण्णोक्ता मग्गा साहूर्ण विहरिउं कालो ॥२॥"त्ति, एवं सोउं भणिओ सद्देहिं-एत्थेव निच्चं किन्न परिवसह ?, तेण भणियं-सनणाणं सउणाणं भमरकुलाणं च गोउलाणं च । अनियत्ता वसहीओ सारइयाणं च मेहागं ॥ १॥ तओ तेहिं अण. JainEducationNE For Private Personel Use Only pww.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy