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________________ लो य अवरकंकपुरि । दट्ठण तहापडियं निडाडियपउमनाहनिवं ॥९८ ॥ ठविउं तरसेव सुयं रज्जे चंपाउरिं समायाओ । इयरोऽवि तरियजलही, लवणाहियसुट्टियसुररस ॥ ९९ ॥ पासंमि वच्चमाणो पभणइ भो पंडवा ! वयह तुन्भे । उत्तरह ताव गंगं जाव अहं सुट्ठियं पासे ॥ १०० ॥ तो ते सयमुत्तरिउं पेसंति न महुमहस्स तं नाव । बेति य परोप्परममी पेच्छामु परक्कम हरिणो ॥ १ ॥ बावद्विजोयणाइं विस्थिन्न किं महानइं गंगं । तरिही भुयाहि ! किं वा नवत्ति एवं परिक्खामो ॥ २ ॥ एत्थंतरंमि सुट्टियसुरंतियं गंतुमागओ। कण्हो । गंगातडंमि चिट्ठइ पलोयमाणो खणं नावं ॥ ३ ॥ जावागया न नावा तावेगभुयाएँ सारही तुरए । घेत्तुं रह च लग्गो बीयाइ भुयाएँ तं तरिउं ॥ ४ ॥ पत्तो य मज्झभागं परिसंतो चिंतई नियमणमि । कहं पंडवेहि एसा 0 बाहाहिं महाणई तरिया ॥ ५ ॥ गंगादेवीवि तयं वियाणिउं देइ थाघमेयरस । बावट्ठिजोयणाई, लंघिय पत्तो तडे ताहे ॥ ६ ॥ पुच्छइ य पंडुपुत्ते तुब्भेहिं कहं इमा समत्तिण्णा । तेऽविय भणंति नावाएँ पोसया किं न सा मज्झं? ॥ ७ ॥ तेयाहु तुह परिक्खत्थमेव तो रूसिऊण कण्हणं । निव्विसया आणत्ता सयं तु पत्तो य बारवइं| on ८ ॥ तेऽविय पंडुस्स तयं, कहंति गंतूण हथिणागपुरं । तेणवि कुंतीऍ पुत्तट्ठाणमणुजाइओ कण्हो॥९॥ Jain Educaton Interi For Private & Personel Use Only O ww.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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