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________________ नागपच कया. श्रीनवाद-विन्नत्तिं ॥४४॥ सच्चं चिय सन्निझं जइ जिणभत्ताण कुणसि तं देवि! । ता पसिय नागदत्तं मोयस एयाओ हवृत्ती अद-IN त्तादाने वसणाओ ॥ ४५ ॥ तब्भत्तिपवणिया सा समागया जत्थ नागदत्तो सो। आरोविउमाढत्तो, सूलाएं तडत्ति सा भग्गा IN॥ ४६ ॥ अण्णाएँ चडाविजइ जाव इमो ताव सावि दोखंडा । संजाया तइयाविहु एवं तो रायपुरिसेहिं ॥ ४७ ॥ रज्जए उब्बिडो तुट्टा साऽओ पुणोर एवं । वाराउ तिषिण जाए भणइ इमं रुसिय वसुदत्तो ॥ ४८ ॥ खग्गेण लुणह सीसं, इमरस रे रे ! नरा ! तओ तेहिं । मुक्को असिप्पहारो इमरस जा कंठदेसंमि ॥ ४९ ॥ तो देवयावसाओ । जाओ सो पुप्फमालियारूवो । तं दटुं भीएहिं नरोहिं रणो समाइ8 ॥ ५० ॥ भणियं रण्णावि झडत्ति मज्झ पासंमि आणह तयंति । इय अच्चब्भुयचरियं पलोइयं जस्स तुझेहिं ॥ ५१ ॥ जं आइसई देवोत्ति भणिय तो तेहिं तस्स पासंमि । सो आणीओ भणिओ, रन्ना संमाणिऊण बहुं ॥ ५२ ॥ भो ! भो ! न तुम कत्ता, इमस्स। कज्जस्स चेहिएणेव । तुह संतिएण कहियं, किंतु फुडं साह सम्भावं ।। ५३ ॥ जस्सेह विलसियमिणं तो सो पडिभणइ सामि ! जइ अभयं । देसि तुमं तस्स तया कहमि नो इहरहा कहवि ॥ ५४ ॥ एवं हवउत्ति तओ भणिए रण्णा कहेइ जहवत्तं । मूलाओ आरब्भा तो रण्णा हत्थिखधंमि ॥ ५५ ॥ आरोविओ पुरीए भमाडिओ Jan Education ana For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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