________________
Jain Education (3
अप्पणा सम एसो । वज्र्ज्जता उज्जपढंत भट्टगिज्जन्तगे एहिं ॥ ५६ ॥ इयरोऽविहु निव्विसओ आणत्तो हिय असेसदविणोहो । रण्णा पभणतेणं वयणमिणं बहुसहामज्झे ॥ ५७ ॥ रे ! रे ! अण्णज्ज ! तुह अज्ज नागदत्तेण रक्खियं जीयं । छुट्टेज्ज कह णु इहरा जीवंतो मह सयासाओ ? ॥ ५८ ॥ मुक्को रण्णा निययं गिहमणुपत्तो स नागदतोऽवि । जणयंतो नियजणणीं, जणयाइजणस्स परिओसं ॥ ५९ ॥ पियमित्तसत्थवाहो, समागओ तत्थ तो कुमारस्स । साहइ नागवसए काउस्सग्गाइवुत्तंतं ॥ ६० ॥ तो परितुट्ठो मण्णइ तप्परिणयणाइ तरस विष्णत्तिं । हिडो इमो य कारइ, सुहृदिणे तीऍ परिणयणं ॥ ६२ ॥ वित्ते पाणिग्गहणे महाविभूईऍ नागदत्तो उ । सोहइ नागवसूए जुत्तो | रामव्य सीयाए ॥ ६२ ॥ जम्मंतरकयसुकयाणुभाव संपजमाणसुहनिवहो । अह सो तीऍ समाणं उवभुंजइ माणुसे भोए | ॥ ६३ ॥ अन्नम्मि दिने पासायवरगओ सह पिवाऍ कीलतो। दट्टण पुरवरीए सोहं हासेण भणइपियं ॥ ६४ ॥ पिहुपायारनियंबा चलग्गरंगंत परिहसारसणा । सुरभवणसिहरओतुंग चंगघणकलसरमणीया ॥ ६५ ॥ रमणीयवासभवणो वसोहि सुन्दरगवक्खनयणिल्ला । पिच्छविए एस पुरीवि तुज्झ करणिं समुव्हई || ६६ || सा भइ किं अमीए नाह ! असंबद्धवयणरयणाए । चिट्ठामो खणमेगं, विउमिट्टेणं विणोएणं ॥ ६७ ॥ पण्हुत्तरगूढच उत्थमाइणा भणइ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org