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वज्जसाराई । नाणड्डयपि पुरिसं पंथाओ उप्पहं निति ॥ ३३ ॥" अन्नत्थ गवक्खत्था तयवत्थं नियवि काऽवि तं बाला । पलवइ सकामहियया अहो न जुत्तं कयं विहिणा ॥ ३४ ॥ जं गुणरयणनिहीविहु एसो संपाविओ इममवत्थं । अण्णा उ भणइ जीसे एस पइ सा हया अज ॥ ३५ ॥ जइ एएणं चिय सह न मरिस्सइ चिंतई तहा अवरा । जीसे दिट्ठिपहं चिय एस गओ सावि इह धन्ना ॥ ३६ ॥ किं पुण कंठविलग्गा इमस्स जा एवमाइ आलावं । निसुणंति नागवसवि दटुं तं गेहमारूढा ॥ ३७ ॥ पासित्तु रायमग्गेण तं निउत्तेहि नीयमाणं च । हाहा हयाम्म एवं विलवंती मुच्छिया सहसा ॥ ३८ ॥ सा तारिसया तेणं दिट्ठा भवियव्वयानिओएणं । चिंतइ पेच्छ मदत्थं पत्तेयं केरिसमवत्थं? ॥ ३९ ॥ जइ मज्झ कहवि होही इमाओ वसणाओं मोयणोवाओ।। ताऽवरसं एईए मणोरहे पूरइस्सामि ॥ ४०॥ इय सो चिंतंतो च्चिय नीओ नरवइनरोहिं वज्झभुवं । भणिओ य |पाव रे इडदेवयं सुमरसु ! इयाणिं ।। ४१ ॥ तो सरियजिणमयत्थो सिद्धाणालोयणं स दाऊणं । गिण्हइ पच्चक्खाणं । सागारं सुद्धपरिणामो ॥ ४२ ॥ इओ य--सा नागवसू किह किहवि चेयणं पाविउं सगिह एव । जिणपडिमाणावासं गंतुं पूइत्तु जिणइंदे ॥ ४३ ॥ काउस्सग्गेण ठिया सासणदेवीपसायणट्ठाए । एगग्गमणा एवं काऊणं तीए
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