________________
हमि उदिऊण गओ । अब्भुढिओ सविणयं तेणवि कय उचियपडिवत्ती ॥ ८५ ॥ पुट्ठो य किं पओयणमालंबेऊण आगया तुब्भे? । अपओयणा पवित्ती, न होइ जं बुद्धिमंताणं ॥ ८६ ॥ पियमित्तेणवि भणियं एकं तुम्हाण दंसणं चेव।। उत्तमजणावलोयणमुत्तमकल्लाणहेउं जं ॥ ८७ ॥ नीईएवि भणियं-"दट्ठव्या रायसहा, दट्ठव्वा राइपूइया पुरिसा ।। जइविन हवंति अत्था तहवि अणत्था खयंजंति ॥८८॥" बीयं पुण मह धूया नागवसू नाम अस्थि विक्खाया। सा अणुरत्ता गाढं, तुह पुत्ते नागदत्तमि ॥८९॥ तीऍ समप्पणहेउं, समागओ ता करेह तह तुम्भे। एयाए नागदत्तो पाणिग्गहणं जह करेइ ॥९॥ धणदत्तो तो चिंतइ तं एवं जं जणो भणइ विसमं । एत्तो बग्यो एत्तो य दुत्तडी भीसणायारा ॥९१॥ पञ्चक्खं (पव्वज ) मज्झ सुओ अहिलसइ इमोऽवि देइ नियधूयं । एवं ववत्थिए ता पडिवयणमिमस्स किं देमि ? ॥१२॥
नियपुत्तस्स सरूवं अहवा साहमि ताव एयस्स । तो जं उचियं होही पच्छा तं चेव काहामो ॥९३ ।। इय चिंतिHऊण कहियं पुत्तसरूवं तओ इमेणावि । पडिभणियं मज्झ सुया. सुमिणेवि न इच्छई अन्नं ॥९४॥ ताए जणणाएँ
जओ जह चिट्ठा तग्गया महं सिट्ठा । ताए जाणामि अहं अवि मरइ न मण्गए अण्णं ॥ ९५ ॥ धणदत्तेणवि भणियं जइ एवं ता भणामि नियपुत्तं । तप्पडिवयणे पुणरवि तुज्झ सरूवं काहस्सामि ॥ ९६ ॥ वच्च तुमं नियगेहं
Jain Education Interi
For Private & Personel Use Only
daw.jainelibrary.org