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________________ श्री नवपदहट्टत्ता अदतादाने ॥ १३२ ॥ Jain Education Int सहीवयणं, तो तीए चिंतियं नियमणंमि । सचमिमीऍ भणियं अक्कहिए जं न पडियारो ॥ ७४ ॥ किं चाभणियं | मए वियाणियं मह सरूवमेयाए । लिंगेहि ता किमज्जवि, गोविज्जइ चिंतिउं भणइ ॥ ७५ ॥ सहि ! जाणसि च्चिय तुमं, पहायसमयंमि अज्ज जिणभवणे । पूयं विरयंतीए जिणिदबिबस्स सविसेसं ॥ ७६ ॥ तारायणप रियरिओ, ससिव्त्र नियमित्तमंडलसमेओ । दिट्ठो पहिदुचित्तो, सेट्ठिसुओ नागदत्तत्ति ॥ ७७ ॥ तेण ममं | नयणखडक्कियाए पविसित्तु चित्तभवणंमि । अवहरियमविण्णायं विवेयरयणं अइमहग्घं ॥ ७८ ॥ तप्पभिदं च न याणे, किंवा जंपामि किं च रोयामि । किं वा हसामि किं वा सुयामि इच्चाइ सव्वाई ॥ ७९ ॥ ताए भणियं | पियसहि ! संपइ मा ऊसुया तुमं होसु । अइरा समीहियत्थो जह होइ तहा तुह करेमि ॥ ८० ॥ एवं भणि. ऊण तओ नागसिरीए सयासमुवगंतुं । जिणभवणगमणमाई कहिओ तन्त्रइयरो सयलो ॥ ८१ ॥ तीएवि निययदइयरस सोऽवि पडिभणइ अम्ह धृयाए । ठाणेच्चिय अणुराओ, जाओ अहवावि जुत्तमिणं ॥ ८२ ॥ उत्तमकुलप्पसूया उत्तमठाणंमि चेव रज्जंति । मोतुं महागयंद, किं करणी जंबुयं महइ ? ॥ ८३ ॥ ता तह करेमि संपइ जह मज्झ सुयाऍ तेण सह जोगो । संजायइ अणुरूवो रईऍ मयरद्धएव ॥ ८४ ॥ एवं भणिउं तत्तो, धणयत्तगि For Private & Personal Use Only 65 गा. धर गुद्वारे नामदत्तकथा. ॥ १३२ ॥ ww.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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