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________________ |चिय वहंती ॥ ६३ ॥ तत्थ य न सुयइ न हसइ, नाहरणं लेइ नालवेइ जणं । बोल्लावंतीण पुणो पडिवयणं देइ न सहीणं ॥ ६४ ॥ एयावत्थं च तयं नाउं माया समागया भणइ । वच्छे ! कहेसु किं ते देहे पीडानिमित्तंति ? ॥६५॥ तीए भणियं-अंब ! न याणामि अहं पीडाए कारणं सरीरंमि । किं तु महादाहो मे वियंभिओ सव्वदेहमि ॥ ६६ ॥ परिहासपेसलाए सहीए एत्थंतरमि संलत्तं । नयणंजलीहि पीओ किं न सलोणो जणो अहियं ॥ ६७ ॥ तो तुहिक्का होउं जाव न किंचिवि करेइ पडिवयणं । भणिया सावट्ठभं ताव इमीएवि तज्जणणी । ॥ ६८ ॥ मा अंब ! कुणह तुब्भे एयाएँ कए मणमि उव्वेयं । अहयं एयसरूवं वियाणिऊणं कहिस्सामि । ॥ ६९ ॥ सह परियणेण जणाणं विसज्जिउं भणइ पियसहि ! कहेसु । जं दुक्खकारणं तुह अक्कहिए नत्थि पडियारो ॥ ७.॥ लोओऽवि जओ जंपइ एवं थवियाण मोत्तियाणऽत्थ । तीरइ नो काउं जे मुलं सुवियक्खणेणावि ॥ ७१॥ किञ्च-जहा खारो हारो तुह ससिकरा बाणनियरा, जलं जालाजालं मलयजरसो अग्गिसरिसो । जलद्दा संतावं जणयदि जहा यंगधरिदा, तहा मण्णे नूणं मयणदहणो तावदि तुमं ॥ ७२ ॥ एवं च तुह सरूवं सामण्णणं वियाणियं चेव । कस्सोवरि तुह चित्तं अणुरत्तं ? कहसु ता मन्झ ॥७३॥ सोऊण Jan Eden For Private Personal use only ILyww.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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