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ता इहि । सम्मत्तमइलणाईपराभवं नेव पार्वितो ॥ १९ ॥ एयं विचिंतयंतो भुंजावित्ता गओ नित्रसगासं । | विन्नविओ नरनाहो पव्वज्जमहं पवज्जामि ॥ २० ॥ ताहे से निब्बंधं रन्ना नाउ विसज्जिओ संतो । आपुच्छिउं | कुटुंबं तयाहिवत्ते ठविय पुत्तं ॥ २१ ॥ आढत्ताओ जिणवरगिहेसु अट्ठाहियाओ पत्रराओ । दीणाणाहाईणं पयट्टिय | विविहदाणं च ॥ २२ ॥ पूइज्जइ सिरिसंघो एत्थंतरयमि सुव्वयजिनिंदो । तत्थेव पुरे पत्तो समोसढो बाहिरुज्जाणे | ॥ २३ ॥ नाऊण जिणागमणं वंदणवडियाए आगओ सिट्टी । नेगमसहरससहिओ धम्मं सोऊण पत्रइओ २४ ॥ थोवेणवि कालेणं जाओ सो बारसंगसुयधारी । संगहियचिहियसिक्खो गीयत्थो परमसंविग्गो | ॥ २५ ॥ संच्छराई बारस सामण्णं निक्कलंकमणुचरि ं । पच्छा विहियाणतणो कालं काऊण सुहझाणो ॥ २६ ॥ दोसागरोत्रमाऊ, बत्तीस विमाणसय सहरसवई । इंदतेणुववण्णो सोहम्मवडिंसयविमाणे गेरुओऽवि मरिऊण । अभिओगिय 11 २७ ॥ आवज्जियाभिओगियकम्मो अह देवेसुं जाओ तन्त्राहणत्ताए ॥ २८ ॥ भणिओ य तन्नि ओगियसुरेहि लीलाए बिलसमाणो छ । एरावणकरिरूवं, | विउव्व आरुहइ जेनिंदो ॥ २९ ॥ ताहे विभंगनाणेण जाणिउं एस सिट्टिजीवुत्ति । न विउव्वइ करिरूवं, हढेण
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