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________________ अवपद.बृह. सम्यक्त्वा ८९॥ कजेण । तइयच्चिय सम्बजणो अब्भुट्ठाणाइ से कुणइ ॥ ७ ॥ तहाहि-कोऽवि निमितंइ गेहे कोऽवि य पाएसु कार्तिक कथा गा.२० पडइ हिट्ठमणो । कोऽवि हु वंदइ सथुणइ कोवि परिपूयए कोऽवि ॥ ८॥ नवरं कत्तियसिट्ठी उवविट्ठो चेव चिट्ठइ तओ सो।नाढाइ मज्झ एसुत्तिचिंतिउं कोवमावण्णो॥९॥ अण्णमि दिणे मासस्स पारणे राइणा स सयमेव । सगिहमि भोय. *णत्थं निमंतिओ नेच्छई कहवि ॥ १० ॥ भणइ य नियहत्थेणं जइ परिवेसेइ कत्तिओ सिही। मज्झं तो तुज्झ गिहे. पारेमि न अन्नहा राय !॥ ११॥ पडिवन्नं तं रन्ना सिट्ठिसयासं गओ सयं चेव । दिण्णासणोवविट्ठो हिट्ठो आभासितो सिट्ठी ॥ १२ ॥ तो तन्निमंतणाई कहइ परिव्वायगस्स वुत्तंतं । पडिभणति कत्तिओ देव ! अम्ह एयं न जुत्तंति ॥१३॥ सम्मत्तमइलणा खलु, जायइ एवं जओ तहावि तुहं । विसए वसामि नरवर ! करेमि जं भणसि तं तेण ॥१४॥ एवं होउत्ति तओ भणियं राया गओ निययगहें । भोयणवेलाए पुण सेट्ठीवि समागओ तत्थ ॥ १५॥ उवविठ्ठो सो भयवं सिट्ठी परिवेसिउं समाढत्तो । तज्जइ तमंगुलीए परिवेसंतं अमरिसेणं ॥ १६ ॥ चिंतेइ तओ सिट्ठी। घिरत्थु जीवाण भागसिद्धाणं । संवसणं गिहवासे एवंविहपरिभवावासो ॥ १७ ॥ धन्नो स गंगदत्तो जो चत्तक लत्तपुत्तगिहीमत्तो । पत्तो संजमरज्जं मणिसुव्वयसामिपासंमि ॥ १८ ॥ तइय च्चिय पव्वज्जं जइ गिण्हंतो अहंपि ॥८ ॥ Jain Education inamsela For Private & Personel Use Only Iww.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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