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________________ त्पादेचित्रा सम्यक्त्वातिपुत्रज्ञात सम्यक्त्वाधि. ॥५२॥ Haअडवी एसोऽवि करालखग्गदुप्पेच्छो ! तो किं इमीऍ एक्काएँ कारणे संसए पडिमो ॥ ६९ ॥ नीतावप्युक्तम्- " त्यजेदेकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् । ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ ७० ॥ " वुत्तं धणेण भो ! भो ! जइ एवं तो पयाह नियगेहं । अहयं पुण नियदुहियं घेत्तूणं आगमिरसामि ॥ ७१ ॥ एवं भणिऊण धणो, पुत्तेहि समं पयट्टिओ गंतुं । इयरेऽवि हु वाहुडिया, गहिउं रित्थं समत्थंपि ॥ ७२ ॥ वच्चंत जाव इमो नियडीहओ चिलाइपुत्तस्स । ताव इमोऽविह तीसे सीसं खग्गेण गहिऊणं ॥ ७३ ॥ मा होउ मज्झ ए वा एयाण चिंतयंतो य । वच्चइ तहेव पुरओ तेऽवि हु पेच्छंति तं देहं ॥७॥ सोयापूरियहियया पियपुत्ता सीसविरहियं | देहं । गाहऊण पडिनियत्ता तिसाबुभुक्खाहि परितंता ॥ ७५ । तरुछायाएँ निविट्ठा, भणिया पिउणा य वच्छ ! तुझेऽत्थ । गाढं छुहाभिभूया सक्कह न पर्यपि गंतूणं ॥ ७६ ॥ ता एण्हि-एकं जराएँ गहियं, अन्नं धूयाए मरण दुक्खत्तं । मं मारिऊण भक्खह तो सुहिया जाह नियगेहं ॥ ७७ ॥ पुत्तेहिं भणियं-हा हा अजुत्तमयं ताय ! तए IN अम्ह साहियं वयणं । एवं काउं अम्हे कस्स मुहं दंसहस्सामो?॥७८ ॥ एमेव जेट्ठपुत्तेण भासिय तपि वारियं तेहिं । एवं कमेण सव्वेहिं भासिए तो पिया भणइ ॥ ७९ ॥ जइ एवं तो पच्छा एयं चिय मयकलेवरं खाह । भइणीए विगय. ॥५२॥ Jain Education in For Private Personel Use Only pww.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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