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मइला । जे पावकम्ममइला ते मइला जीवलोयंमि ॥३४॥" इयं एवमाइवयणहिं जावस कओ निरुत्तरो तेणं। ताहे से सीसत्तं पडिवन्नो भावरहिओऽवि ॥ ३५ ॥ उवसंहरिऊण तओ वायं साहू समागओ वसहिं । अभिवंदिऊण सरि दिक्खं च दवावई तस्स ॥ ३६ ॥ पडिवन्नपालणं चिय महव्वयं होइ वीरपुरिसाणं । चिंततेणं तणवि पडिवण्णा दव्वओ दिक्खा ॥ ३७ ॥ भणियं च-"छिज्जउ सीसं अह होउ बंधणं वयउ सब्बहा लच्छी। पडिवण्णपालणेसुं पुरिसाण जं होइ तं होउ ॥ ३८ ॥” अण्णया य-कत्थवि अत्थे संचोइयरस से देवयाएँ परिणामो । भावेणवि संजाओ किंतु दुगुंछं न सो मुयइ ॥ ३९ ॥ सन्नायओऽवि सव्वे, उवसंता तस्स सावया जाया । नवरं भज्जाएँ कयं । मूढाए कम्मणं तस्स ॥४०॥ दिन्नं च भत्तपाणाइदाणवेलाए कहवि पच्छण्णं । अण्णाणाओ भुत्ते तयंमि सो जाओ
रो ॥ ४१ ॥ तो वयलोवभयाओ गहियाणसणो मओ समाहाए । संपत्तो सुरलोय, अपडिकंतो दुगुंछाए। Min४२॥ तेणं चिय वेरग्गेण सावि पडिवजिऊण पव्वजं । लज्जाएँ तमकहित्ता गुरूण कालेण कालगया ॥४३॥
पुवकयसुकयवसओ उववण्णा सावि देवलोयंमि । भुंजंति दिव्वलो (भो)ए दोवि तहिं देवभवजोग्गा ॥ ४४ ॥ इओ | य-अत्थि इह भरहत्ते मगहानामेण जणवओ रम्मो । तंमि पुरं रायगिहं गिहदेउलहट्टसोहिल्लं ॥४५॥ तत्थ |
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