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________________ नवपदan१०१॥ अहवा अइसयनाणिं, तमेव गंतृण वंदिऊण तहा। पुच्छामि सबमेयं इय चिंतिय जाइ जिणपासं ॥१०॥ मिथ्यात्वा वृत्तिम्मू.देव. तिचारे शि१. यशो. वंदित्ता आपुच्छइ जं जं सामीवि कहइ सेसं तं । तो पडिबुद्धो चिंतइ सव्वन्न णिच्छएणेसो ॥१०३ ॥ इय चिंतिऊण वर्षिज्ञातं विणयावबडसीसंजली भणइ णाह ! । काउं महापसायं नियादिक्खं मज्झ वियरेसु ॥ १०४ ॥ अण्णाणपासएणं छलिओऽहं णाह ! एत्तियं कालं । तेण न नाओ तं सामि! सयलतेलोकपयडोऽवि ॥ १०५॥ इय एवं पभणेतो स मादिक्खिओ सामिणा नियकरेण । सिक्खाविओ य समयं सामाया च साहूणं ॥ १०६ ॥ अप्पेणवि । कालणं सुत्तत्थविसारओ य संपन्नो । परिपालिऊण बहवे वरिसे छउमत्थपरियायं ॥ १०७ ॥ अंतमि खवगसेटिं आरुहिऊणं विसुद्धझाणेणं । णिहघायकम्मो उप्पाडइ केवलं नाणं ॥ १.८॥ केवलिपरियाएणवि कित्तियकालं इहऽच्छिउं पच्छा । सेलोसि पडिवन्जिय सिद्धो नीसेसहयकम्मो॥१.९॥ एवं सुपसत्थमिणं सिवरायसिसस्स साहियं । चरियं । वित्थरओ जह दिटुं भगवइइक्कारससयंमि ॥ ११०॥ एयाणुसारउच्चिय पायं मोग्गलकहावि दट्ठन्वा । किं तु विभंगो से उड्डलोयविसओ समुप्पण्णो॥१११॥ अस्सि लोए उर्दू सुरा य कप्पा य बंभलोयंता। तेण परं वोच्छिन्ने मन्नइ देवे य कप्पे य॥ ११२ ॥ सेसं इहंपि तंचेव जाव पुच्छेद गोयमो वीरं । सामीवि भणइ गोयम ! देवा सव्वट्ठ Jain Education International For Private & Personel Use Only Mww.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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