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ता नत्थि एत्थ दोसो पञ्चक्खाएवि निरहिगरणम्मि । गुणभावाओ अ तहा एवं च इमं हवइ सुद्धं ॥ ५४६ ॥ फासिअं पालिअं चेव, सोहिअं तीरिअं तहा । किहिअमाराहिअं चेव, जएज एआरिसम्मि अ ॥ ५४७ ॥ दारगाहा उचिएकाले विहिणा पत्तं जं फासिअं तयं भणिअं । तह पालिअं तु असई सम्मं उवओगपडिअरियं ॥ ५४८ ॥ गुरुदासेस भोअण सेवणयाए उ सोहिअं जाण । पुण्णेऽवि थेवकालावस्थाणा तीरिअं होइ ॥ ५४९ ॥ भोकाले अमुगं पञ्चक्खायंति भुंजि किट्टिअयं । आराहिअं पगारेहिं सम्ममे एहिं निट्टविअं ॥ ५५० ॥ एअं पञ्चक्खाणं विसुद्धभावस्स होइ जीवस्स । चरणाराहणजोगा निघाणफलं जिणा बिंति ॥ ५५९ ॥ इदाणं जह पुष्विं वदति तओ अ चेइए सम्मं । बहुवेलं च करेंती पच्छा पेहंति पुञ्छणगं ।। ६५२ ॥ गुरुणाऽणुष्णायाणं सवं चिअ कप्पई उ समणाणं । किञ्चंति (पि)जओ काउं बहुवेलं ते करिंति तओ ॥ ५५३ ॥ उवहिं च संदिसाविअ पेहिंति जहेव वण्णिअं पुधिं । विश्चमि अ सज्झाओ तस्स गुणा वण्णिआ एए ॥ ५५४ ॥ आयहिअपरिण्णा भावसंवरो नवनवो अ संवेगो । निक्कंपया तवो निज्जरा य परदेसिअत्तं च ॥५५५॥ सूचागाहा। आयहिअमजाणतो मुज्झइ मूढो समाययइ कम्मं । कम्मेण तेण जंतू परीति भवसागरमणंतं ॥ ५५६ ॥ आयहिअं जाणतो अहिअनिअत्तीअ हिअपवत्तीए । हवइ जओ सो तम्हा आयहिअं आगमे अवं ॥ ५५७ ॥ दारं ॥ सज्झायं सेवतो पंचिंदिअसंवुडो तिगुत्तो अ । होइ अ एगग्गमणो विणएण समाहिओ साहू ॥ ५५८ ॥ नाणेण सवभावा नज्जंते जे जहिं जिणक्खाया । नाणी चरित्तजुत्तो भावेणं संवरो होइ ॥ ५५९ ॥ दारं ॥
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