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काले अपहुप्पंते उच्चाओ वावि ओहमालोए। वेला गिलाणगस्स व अइगच्छइ गुरु व उच्चाओ॥ ३३५॥ पुरकम्म पच्छकम्मे अप्पेऽसुद्धे अ ओहमालोए । तुरिअकरणंमि जं से ण सुज्झई तत्तिअंकहए ॥ ३३६॥ आलोएत्ता सवं सीसं सपडिग्गहं पमजित्ता । उड्डमहे तिरिमि अ पडिलेहे सघओ सवं ॥ ३३७॥
उड्डे घरकोइलाई (दाएं) तिरिअं मजारसाणडिंभाई (दारं)।
खीलगदारुगपडणाइरक्खणहा अहो पेहे ॥ ३३८॥ दारं ॥ ओणमओ पवडिना सिरओ पाणा अओ पमजिज्जा । एमेव उग्गहंमिवि मा संकुडणे तसविणासो॥३३॥ काउं पडिग्गहं करयलंमि अद्धं च ओणमित्ताणं । भत्तं वा पाणं वा पडिसिज्जा गुरुसगासे ॥ ३४॥ ताहे दुरालोइअ भत्तपाणे एसणमणेसणाए उ । अदुस्सासे अहवा अणुग्गहाई उ झाएज्जा ।। ३४१॥
विणएण पट्टवित्ता सज्झायं कुणइ तो मुहुत्तागं।
एवं तु खोभदोसा परिस्समाई अ होंति जढा ॥ ३४२॥ आलोअणत्ति दारं गयं ॥५॥ दुविहो अहोइ साहू मंडलिउवजीवओ अ इअरो अ। मंडलि उवजीवंतो अच्छह जा पिंडिआसवे ॥३४३॥ इअरो संदिसहत्ति अपाहुणखमणे गिलाण सेहे अ। अहरायणि सवे चिअत्तेण(त्त)निमंतए एवं ॥३४४॥ दिन्ने गुरूहि तेहिं सेसं भुंजेज गुरुअणुण्णाओ। गुरुणा संदिट्ठो वा दाउं सेसं तओ भुंजे ॥ ३४५॥ इच्छिज्ज न इच्छिज्ज व तहवि अपयओ निमंतए साहू । परिणामविसुद्धीए निजरा होअगहिएऽवि ॥३४६॥
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