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________________ मिक्षेये श्रीपञ्चव. २ प्रतिदिनक्रिया आलोचना ॥२५३॥ RECE-ROGRAMMELANGANAMA ते चेव तत्थ नवरं पायच्छित्तंति आह समयण्णू । जम्हा सइ सुहजोगो कम्मक्खयकारणं भणिओ॥३२२॥ सुहजोगो अ अयं जं चरणाराहणनिमित्तमणुअंपि । मा होज किंचि खलिअंपेहेइ तओवउत्तोऽवि ॥३२॥ कायनिरोहे वा से पायच्छित्तमिह जं अणुस्सरणं । तं विहिआणुट्टाणं कम्मक्खयकारणं परमं ॥ ३२४ ॥ जह एवं ता किं पुण अन्नत्थवि सो न होइ नियमेण । पच्छित्तं होइ चिअ अणिअमओज अणुस्सरणे ॥३२५॥ चिंतित्तु जोगमखिलं नवकारेणं तओ उ पारित्ता। पढिऊण थयं ताहे साहू आलोअए विहिणा ॥ ३२६ ॥ भिक्खिरिअत्ति दारं गयं ॥ ३-४॥ वक्खित्त पराहुत्ते पमत्ते मा कयाइ आलोए । आहारं च करिती नीहारं वा जइ करेइ ॥३२७॥ दारगाहा॥ कहणाई वक्खित्ते विगहाई पमत्त अन्नओ व मुहे । अंतर अकारगंवानीहारेसंक मरणं वा ॥ ३२८॥ दारं॥ अबक्खित्तं संतं उवसंतमुवट्टियं च नाऊणं । अणुनविउं मेहावी आलोएज्जा सुसंज(य)ए ॥ ३२९ ॥ कहणाई अवक्खित्तं कोहादुवसंत वढियमुवतं । संदिसहत्ति अणुण्णं काऊण विदिन आलोए॥३३०॥दार।। णदं चलं च भासं मूअं तह ढड्डरं च वजिज्जा । आलोएज सुविहिओ हत्थं मत्तं च वावारं ॥ ३३१॥ करपायभमुहसीसच्छिहोडमाईहिं नच्चि नाम । दारं । चलणं हत्थसरीरे चलणं काएण भावेण ॥३३२॥ गारत्थिअभासाओ य वजए मूअ ढड्डरं च सरं । आलोए वावारं संसहिअरे य करपत्ते ॥ ३३३ ॥ एअद्दोसविमुक्को गुरुणो गुरुसंमयस्स वाऽऽलोए । जं जह गहिअं तु भवे पढमाया जा भवे चरमा॥३३४॥ NCRESCRECORRECECOLOGGERDC ॥२५३॥ Jain Education international For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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