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________________ REACROCOCALCRECORRECASSCORESANGA तत्तो अ जहाविहवं पूअं स करिज वीयरागाणं । साहूण य उवउत्तो एअंच विहिं गुरू कुणइ ॥१२४॥ चिइवंदण रयहरणं अट्टा सामाझ्यस्स उस्सग्गो। सामाइयतिगकडण पयाहिणं चेव तिक्खुत्तो॥१२॥ दार। सेहमिह वामपासे ठवित्तु तो चेइए पवंदंति । साहूहिं समं गुरवो थुइवुड्डी अप्पणा चेव ॥ १२६ ॥ पुरओ उ ठंति गुरवो सेसावि जहक्कम तु सहाणे । अक्खलिआइकमेणं विवजए होइ अविही उ ॥१२७ ॥ खलियमिलियवाइई हीणं अच्चक्खराइदोसजुअं। वंदंताणं नेआऽसामायारित्ति सुत्ताणा ॥ १२८ ॥ दारं ॥ वंदिय पुणुहिआणं गुरूण तो वंदणं समं दाउं । सेहो भणाइ इच्छाकारेणं पचयावेह ॥ १२९ ॥ इच्छामोत्ति भणित्ता उट्टेउं कड्डिऊण मंगलयं । अप्पेइ रओहरणं जिणपन्नत्तं गुरू लिंगं ॥१३०॥ पुवाभिमुहो उत्तरमुहो व देजाऽहवा पडिच्छिज्जा।जाए जिणादओ वा दिसाएँ जिणचेइआइंवा॥१३१॥दा. हरइ रयं जीयाणं बज्झं अभंतरं च जं तेणं । रयहरणंति पवुच्चइ कारणकजोवयाराओ ॥ १३२ ॥ संजमजोगा एत्थं रयहरणा तेसि कारणं जेणं । रयहरणं उवयारो भण्णइ तेणं रओ कम्मं ॥ १३३ ॥ केई भणंति मूढा संजमजोगाण कारणं नेवं । रयहरणंति पमजणमाईहुवघायभावाओ ॥१३४॥ मूइंगलिआईणं विणाससंताणभोगविरहाई । रयदरिथजणसंसजणाइणा होइ उवधाओ॥ १३५॥ पडिलेहिउँ पमजणमुवघाओ कह णु तत्थ होज्जा उ ? । अपमजिउंच दोसा वचादागाढवोसिरणे ॥ १३६ ॥ आयपरपरिचाओ दुहावि सत्थस्सऽकोसलं नूणं । संसजणाइदोसा देहे इव न विहिणा हुंति ॥१३७॥ दारं॥ ASEARCREENA-NCREASEAREST Jain Education For Private & Personel Use Only amelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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