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श्रीपञ्चव.
१ प्रव्रज्या
सूत्रे
॥ २४६ ॥
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अह बदिउं पुणो सो भणइ गुरुं परमभत्तिसंजुत्ते । इच्छाकारेणऽम्हे मुंडावेहत्ति सपणामं ॥ १३८ ॥ इच्छामोति भणित्ता मंगलगं कड्डिऊण तिक्खुत्तो । गिन्हइ गुरु उवउत्तो अहा से तिन्नि अच्छिन्ना । १३९ | दारं । वंदितु पुणो सेहो इच्छाकारेण समइअं मिति । आरोवेहन्ति भणइ संविग्गो नवरमायरियं ॥ १४० ॥ इच्छामोति भणित्ता सोऽवि अ सामइअरोवणनिमित्तं । सेहेण समं सुत्तं कहित्ता कुणइ उस्सगं ॥ १४१ ॥ लोगस्सुज्जोअगरं चिन्तिय उस्सारए असंभन्ते । नवकारेणं तप्पुवगं च वारे तओ तिष्णि ॥ १४२ ॥ सामाइ अमिह कहुइ सीसो अणुकढई तहा चेव । अप्पाणं कयकिचं मन्नतो सुद्धपरिणामो ॥ १४३ ॥ दारं तत्तो अ गुरु वासे गिव्हिअ लोगुत्तमाण पाएसं । देइ अ तओ कमेणं सधेसिं साहुमाईणं ॥ १४४ ॥ तो वंदणगं पच्छा सेहं तु दवावए टिओ संतो। वंदिता भइ तओ संदिस्सह किं भणामोत्ति १ ॥ १४५ ॥ वंदितु पवेयअह भइ गुरू वंदिउं तओ सेहो । अद्वावणयसरीरो उवन्तो अह इमं भणइ ॥ १४६ ॥ तुम्भेहिं सामाइ अमारो विअमिच्छामो उ अणुसट्ठि । वासे सेहस्स तओ सिरंमि दितो गुरू आह ॥ १४७ ॥ णित्थारगपारगो गुरुगुणेहिं बद्दाहि वंदिउं सेहो । तुम्भं पवेइअं संदिसह साहूणं पवेएमि ॥ १४८ ॥ अन्ने उ इत्थ वासे देंति जिणाईण तत्थ एस गुणो । सम्मं गुरुवि नित्थारगाइ तप्पुवगं भणइ ॥ १४९ ॥ आह य गुरू पवेअह बंदिअ सेहो तओ नमोकारं । अक्खलिअं कहूं तो पयाहिणं कुणइ उवउत्तो ॥ १५० ॥ आयरियाई सच्चे सीसे सेहस्स दिति तो वासे ॥ दारं । एवं तु तिन्नि वारा एगो उ पुणोऽवि उस्सग्गं ॥ १५१ ॥
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प्रव्रज्यास्थानं
॥ २४६ ॥
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