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संलेखनावश्यकता
SACAR
॥२२४॥
श्रीपञ्चव. एतस्य-उपक्रमणस्य यात्येवं गोचरत्वं संलेखनायाः तथा तथा 'समयभेदेन' कालभेदेनेति गाथार्थः॥८॥ युगपत्तु क्षिप्यमाणं ५ वस्तुनि तन्मांसादि उदयभावेन-प्रचुरतया प्रायशो जीवं, किमित्याह-च्यावयति शुभयोगात् सकाशात्, किमिव कमित्याहअभ्युद्यत- बहुगुरुसैन्यमिव सुभटं च्यावयति जयादिति गाथार्थः ॥ ८२॥ मरणे आहऽप्पवहणिमित्तं एसा कह जुजई जइजणस्स।समभाववित्तिणो तह समयत्थविरोहओ चेव ? १५८३
तिविहाऽतिवायकिरिआ अप्पपरोभयगया जओ भणिया।
बहुसो अणि?फलया धीरेहि अणंतनाणीहिं ॥ १५८४ ॥ ६ भण्णइ सच्चं एअंण उ एसा अप्पवहणिमित्तंति । तल्लक्खणविरहाओ विहिआणुटाणभावेण॥१५८५॥ हैजा खलु पमत्तजोगाणिअमारागाइदोससंसत्ता।आणाओ बहिभूआ सा होअइवायकिरिआय॥१५८६॥ हैजा पुण एअविउत्ता सुहभावविवडणा अनियमेणं।सा होइ सुद्धकिरिआ तल्लक्खणजोगओ चेव॥१५८७॥
पडिवज्जइ अ इमं जो पायं किअकिच्चिमो उ इह जम्मे।
सुहमरणमित्तकिच्चो तस्सेसा जायइ जहुत्ता ॥ १५८ ॥ १५८८ ॥ मरणपडिआरभूआ एसा एवं च ण मरणनिमित्ता।जह गंडछेअकिरिआ णो आयविराहणारूवा॥१५८९॥
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RORESCRI.
॥२२४॥
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