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________________ पट्टवसु अणुण्णाए तत्तो दुअगावि पट्टवेइत्ति। तत्तो गुरू निसीअइ इअरोऽवि णिवेअइ तयंति ॥ ९५४ ॥ तत्तोऽवि दोऽवि विहिणा अणुओगं पट्ठविंति उवउत्ता। वंदित्तु तओ सीसो अणुजाणावेइ अणुओगो ॥ ९५५ ॥ है अभिमंतिऊण अक्खे वंदइ देवे तओ गुरू विहिणा। ठिअ एव नमोक्कारं कड्डइ नंदिंच संपुन्नं ॥९५६ ॥ Pइअरोऽवि ठिओ संतो सुणेइ पोत्तीइ ठइअमुहकमलो।संविग्गो उवउत्तो अच्चंतं सुद्धपरिणामो॥९५७॥ तो कड्डिऊण नंदि भणइ गुरू अह इमस्स साहुस्स। अणुओगं अणुजाणे खमासमणाण हत्थेणं ॥९५८॥ दवगुणपज्जवेहि अएस अणुन्नाउ वंदिउं सीसो।संदिसह किं भणामो? इच्चाइ जहेव सामइए॥९५९॥ 18 नवरं सम्मं धारय अन्नेसिं तह पवेअह भणाइ । इच्छामणुसट्टीए सीसेण कयाइ आयरिओ॥ ९६०॥ तिपयक्खिणीकए तो उवविसए गुरु कए अ उस्सग्गे। सणिसेजत्तिपयक्खिण वंदण सीसस्स वावारो॥९६१ ॥ . पञ्चव.२५ उवविसइ गुरुसमीवे सो साहइ तस्स तिन्नि वाराओ।आयरियपरंपरएण आगए तत्थ मंतपए ॥९६२॥ Join Education International For Private & Personal Use Only Mainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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