________________
विसया य दुक्खरूवा चिंतायासबहुदुक्खसंजणणा।माइंदजालसरिसा किंवागफलोवमा पावा ॥ ८७२॥ तत्तो अमाइगामस्स निआणं रुहिरमाइ भाविजा। कलमलगमंससोणिअपुरीसपुण्णं च कंकालं ॥८८०॥ तस्सेव य समरागाभावं सइ तम्मि तह विचिंतिजा।संझब्भगाण व सया निसग्गचलरागयं चेव ॥८८१॥ असदारंभाण तहा सवेसिं लोगगरहणिज्जाणं । परलोअवेरिआणं कारणयं चेव जत्तेणं ॥ ८८२॥ तस्सेव यानिलानलभुअगेहिंतोऽवि पासओ सम्मं । पगई दुग्गिज्झस्सव मणस्स दुग्गिज्झयं चेव ॥८८३॥ जच्चाइगुणविभूसिअवरधवणिरविक्खयं च भाविजा। तस्सेव य अइनिअडीपहाणयं चेव पावस्स ॥८८४॥ चिंतेइ कज्जमन्नं अण्णं संठवइ भासए अन्नं । पाढवइ कुणइमन्नं मायग्गामो निअडिसारो॥ ८८५॥ |तस्सेव य झाएजा भुजो पयईअ णीयगामित्तं । सइसोक्खमोक्खपावगसज्झाणरिवुत्तणं तहय ॥८८६॥ अच्चुग्गपरमसंतावजणगनिरयाणलेगहेउत्तं । तत्तो अ विरत्ताणं इहेव पसमाइलाभगुणं ॥ ८८७ ॥ परलोगम्मि असइ तविरागबीजाओं चेव भाविजा। सारीरमाणसाणेगदुक्खमोक्खं सुसोक्खं च॥८॥ भावमाणस्स इमं गाढं संवेगसुद्धजोगस्स । खिज्जइ किलिट्टकम्मं चरणविसुद्धी तओ निअमा॥८८९॥
Jain Education International
For Private & Personel Use Only
www.jainelibrary.org