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वृत्तिः
पाक्षिकसू० चतस्रश्चतुःसङ्ख्याः चः समुच्चये का इत्याह-सुखदाः शय्याः सुखशय्याः, एता दुःखशय्याविपरीताः प्रायःप्रागिवाव
गन्तव्याः। यदाह-"चत्तारि य सुहसिज्जाउ पन्नत्ताउ तत्थ खलु इमा पढमा सुहसेज्जा, से णं मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निवितिगिच्छे नो भेयसमावन्ने नो कलुससमावन्ने निग्गंथं पावयणं सद्दहइ पत्तियइ रोएइ निग्गंथं पावयणं सद्दहमाणे पत्तियमाणे रोएमाणे नो मणं उच्चावयं नियच्छइ नो विणिग्यायमावज्जइ पढमा सुहसेजा ॥१॥ अहावरा दोच्चा सुहसेज्जा, से एं मुण्डे भवित्ता जाव पवइए सएणं लाभेणं तुस्सइ परस्स लंभं नो आसाएइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अभिलसइ परस्स लाभं अणासाएमाणे जाव अणभिलसमाणे नो मणं उच्चावयं नियच्छइ नो विणिग्यायमावजइ दोच्चा सुहसेज्जा ॥ २ ॥ अहावरा तच्चा सुहसेज्जा, से णं मुण्डे भवित्ता जाव पव|इए दिवमाणुस्सए कामभोगे नो आसाएइ जाव नो अभिलसइ दिवमाणुस्सए कामभोए अणासाएमाणे जाव अणभिलसमाणे नो मणं उच्चावयं नियच्छइ नो विणिग्यायमावज्जइ तच्चा सुहसेज्जा ॥३॥अहावरा चउत्था सुहसेज्जा,से णं मुण्डे जाव पवइए तस्स णं एवं भवइ जइ ताव अरहन्ता भगवन्ता हहा अरोगा बलिया कल्लसरीरा अन्नयराइं उरालाई कल्लाणाइं विपुलाई पयत्ताई पग्गहियाई महानुभागाइं कम्मक्खयकारणाइं तवोकम्माइं पडिवजन्ति, किमङ्गपुण अहं अब्भोवगमिउवक्क
मियं वेयणं नो सम्मं सहामि खमामि तितिखेमि अहियासेमि, ममं च णं अब्भोवगमिउवक्कमियं वेयणं सम्मं असहमातणस्स अणहियासेमाणस्स किं मन्ने कजइ? एगंतसो मे पावे कम्मे कज्जइ, मम णं च णं अब्भोवगमिउ जाव सम्मं सहमा-14
णस्स जाव अहियासेमाणस्स किं मन्ने कज्जइ? एगन्तसो मे निजरा कज्जइ, चउत्था सुहसेज्जा॥४॥हत्ति शोकाभावेन हृष्टा
RECAREERCAX
॥ ३७॥
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