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________________ पाक्षिकसू० ॥ २४ ॥ Jain Education चेडीए सद्दावित्ता पुच्छिओ 'किं मग्गसित्ति' तेणुत्तं ' भिक्खन्ति' तओ अणाए दवाविया से य मोयगा, तओ पुणो पुच्छिओ किं निमित्तं तुमं धम्ममिमं करेसि ? सो भणई 'सुहनिमित्तं' तओ तीए जंपियं जइ एवं तो मए चेव समाणं भोगे भुंजाहि, मा हत्थगयं सुहं परिच्च इऊण अणागयसन्दिद्धसुहासाए अप्पाणं किलेसेहेत्ति' सोवि उण्हेण तजिओ उवसग्गिज्जन्तो य पडिभग्गो पच्छन्ने ठिओ भोगे भुञ्जइ, साहूहि य मग्गिओ, न दिट्ठो, पच्छा से माया उम्मत्तिया जाया पुत्तसोगेण, नयरं भमन्ती अरहन्नयं विलवन्ती जं जहिं पासइ तं तहिं सर्व्वं भणइ अरहन्नओ दिट्ठोत्ति, एवं विलवमाणी भमइ, जावनया तेणोलोयणगएण दिठ्ठा, पञ्चभिन्नाया, तओ ताहे चैव उयरित्ता पाएसु पडिओ, सावि तं पेच्छिऊण ताहे चैव सत्थचित्ता जाया, ताए भन्नइ 'पुत्तय पवयाहि' मा तित्थयराणमाणं विराहिय दोग्गई जाहिसि' सो भणइ 'अम्मो न तरामि |दीहकालं संजमं परिवालिडं जइ परं गहियसञ्जमो खिप्पमणसणविहिणा कालं करेमि' मायाए भणियं 'एवं करेहि' मा पुत्तय ! असओ भविय संसारसागरे निम्मज्जाहि यतः "वरं पवेडुं जलियं हुयासणं, न यावि भग्गं चिरसश्चियं वयं । वरं हि म सुविसुद्ध कम्मुणो न यावि सीलक्खलियस्स जीवियन्ति” पच्छा सो गुरुसगासे आलोइय पडिक्कन्तो | समारोवियपञ्चमहवयभरो कयाणसणो भविय ताहे चेव तत्तसिलायले पाओवगमणं करेइ, मुहुत्तेण सुकुमालसरीरोत्ति नवणीयपिण्डो व उण्हेण विलीणोत्ति' । कोपेन पुनर्यथा 'एगो साहू गामन्तराओ गुरुसमीवमागच्छन्तो अन्तरा परिवाइयं संमुहमिन्ति पेच्छिय एयाए पवयणपच्चयाए वयम्भञ्जामित्ति पदुचित्तो तत्थेव तं पडिसेवित्ता गुरुसगासमागओ कहेइ जहा 'मए दुट्ठपरिवाइयाए वयं भग्गन्ति' । मानेन पुनर्यथा 'एगंमि गच्छे एगो तरुणसमणो मणोहरागिई, तं दमेगा तरु For Private & Personal Use Only वृत्तिः ॥ २४ ॥ jainelibrary.org
SR No.600099
Book TitlePakshika Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anykaalin
File Size9 MB
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