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________________ नन्दिसूत्रम् । ॥३९॥ प्रस्तावना। आपणे आपणा हाथे ज सहुना हाथमा मूकवां ए शु बुद्धिमत्ता छे ? धन छे. एनी चोरी करनार होय ज. माटे शु चोरोना हाथमा आपणे ज अमूल्य धन पहोंचतु' करवु के ऐनुं संरक्षण कर? जैन आगमो मुक्तिनी साधना माटे छे. ए आगमोनो आ ध्येय माटे उपयोग ते सदुपयोग छे, अने ते सिवाय तेनो उपयोग ए दुरुपयोगज छे. माटे ज नंदीमा जणाव्यु छे के " आगमने पामीने अनंता तर्या अने अनंता दृव्या" आवां अमूल्य सूत्रो अयोग्य आत्माओना हाथमा जाय नहीं ए माटे आपणे तकेदारी राखवी जोइए. आवी तकेदारी अथवा आवा प्रयत्नोने ज्ञानीओ श्रुतभक्ति कहे छे. ते प्रमाणे वर्तनाराओने श्रुतना प्रचारक अने श्रुतना रक्षक कहे छे अयोग्य आत्माओना हाथमां पहोंचता करनारा तो एना नाशक छे. लेखन अने मुद्रणमां तो घणो मोटो तफावत छे. लेखन तो खुद साधुओ पण करी शके छे. वळी लेखनमां तो अमुक लीमीटमा ज कोपीओ नीकळे छे. ज्यारे मुद्रणमां तो जोइए तेटली नीकळी शके. तेनी अमुक नकलो तो सरकारने तथा प्रेसवाळाने आपवीज पडे, ज्यारे लेखनमां एवं कशुज नथी. लेखन ए खरेखर ज लेखन छे. लेखन ए घणा समय सुधी टकी रहेनारी कळानो नमुनो ज छे. ज्यारे मुद्रण थोडा वर्षोमा ज नाश पामनारी यांत्रिक क्रिया छे. लेखन ए अतिशयज्ञानीओए शरु करेली श्रुतपरपराने जीवाडनारी एक अमृतक्रिया छे. ज्यारे मुद्रणमां अनेक दोषो छे. माटे 'आ लेखन अने मुद्रणमां कोई विशेष अंतर नथी' एम कहेवु ए वधारे पडतुज छे. निशीथ नाम एटले ज अप्रकाशधर्म छे. माटे निशीथनुं ज्ञान परिणतने | | ज अपाय पण अपरिणत के अतिपरिणतने तो नज अपाय. आ तो लोकोत्तरशास्त्र छे. पण लौकिक, रहस्ययुक्त विद्या, ॥३९॥ या For Private & Personal Use Only Jan Education Internal www.jainelibrary.org
SR No.600097
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size14 MB
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