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नन्दिसूत्रम् ।
॥३२॥
प्रस्तावना।
(७) सादि (८) अनादि (९) सपर्यवसित (१०) अपर्यवसितश्रुत. आ चारेने संक्षेपमा बतावे छ- | आ द्वादशांगी पर्यायार्थिक नयनी अपेक्षाए सादिसपर्यवसित छे अने द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षाए अनादिअपर्यवसित छ.' अहीं ते नयने स्थाने अनुक्रमे व्यवच्छित्तिनय तेमज अव्यवच्छित्तिनय एवो प्रयोग कर्यों छे. ते पछी उपरोक्त विकल्पने द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भावथी विचारे छे. अने ते दर्शावी अंतमा जणावे छे के 'अक्षरनो-ज्ञाननो अनंतमो भाग जीवनो सदाय अनावृत रहे छे. जो एटलो भाग पण आवरण पामी जाय (ढकाइ जाय) तो जीव, जीव तरीके रही शके नहीं. त्यारबाद तेना समर्थनमा दृष्टांत आप्या छे.
[११] गमिकश्रुत [१२] अगमिकश्रुतःगमिकमा दृष्टिवाद, अगमिक-कालिकश्रुतमां एटले प्रायः जेमा गमा बहु ओछा छ, तेवा आचारांगादि ११ अंगनो समावेश थाय छे. त्यारवाद छेल्ला बे भेद दर्शावे छे.
[१३] अंगप्रविष्ट [१४] अंगबाहिर:ते अंगप्रविष्टना १२ भेद छे. ते १२ अंग जाणवा. सम्यक्श्रुतना अधिकारमा जे नाम बताव्या छे तेज जाणवा. अंगबाहिरमा छ आवश्यक [१] सामायिक [२] चतुर्विंशतिस्तव [३] वंदन [४] प्रतिक्रमण [५] कायोत्सर्ग अने [६] प्रत्याख्यान,
आवश्यकव्यतिरिक्तः- तेना बे भेद [१] कालिक [२] उत्कालिक.
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