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संज्ञिश्रुतः-
हेतुपदेशिक सा संजिश्रुत
प्रस्तावना।
नन्दिसूत्रम् । ॥३ ॥
[३] संज्ञिश्रुतः- [A] कालिकोपदेशिक संज्ञिश्रुतना २ भेद छे. (1) संज्ञिने होय छे (II) असंज्ञिने होय छे.
[B] हेतुपदेशिक संज्ञिश्रुतः- उपर मुजबना बे भेदवाळु छे. [c] दृष्टिवादोपदेशिक संज्ञिश्रुत तेना उपर प्रमाणे २ भेद छे.. [1] श्रुतनिश्रित-क्षयोपशमथी प्राप्त थयेल. [I] अश्रुतनिश्रित-क्षयोपशमथी प्राप्त थयेल.
(आ सम्यग्दृष्टिनेज होय तेथी सम्यग्श्रुत ज जाणवु.) [४] असंज्ञिश्रुतः- आनो भेद जुदो नथी बताव्यो. तेथी जे उपर असंज्ञिश्रुतनो भेद बताव्यो छे, ते ज समजी लेवो.
E- तेना १२ भेद छ
स्थानांग (४) समवायांग (५)
याकरण (११) विपा
(१) आचारांग (२) सूयगडांग (३) स्थानांग (४) समवायांग (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति (६) ज्ञाताधर्मकथा (७) उपासकदशांग (८) अंतकृदशांग (९) अनुत्तरौपपातिक (१०) प्रश्नव्याकरण (११) विपाकसूत्र (१२) दृष्टिवाद. अहिं जणावे छे के जे संपूर्ण दशपूर्वी छे, तेने नियमथी (भाव) सम्यक् श्रुत छे. तेथी ओछा ज्ञानवाळामां भाव सम्यकश्रुतनी भजना समजवी.. मिथ्याश्रुतः- अहीं मिथ्यादृष्टिविरचित अनेक ग्रंथोना नाम जणाव्या. छे. जेनो परिचय आपे छे:आमां पण एक विशिष्टता बतावी छे के आ द्रव्य मिथ्याश्रुत पण सम्यक्श्रुत बने छे. पछी उपरोक्त विशिष्टतानुं कारण जणावतां फरमावे छे के, ते न मिथ्याश्रुत मिथ्यादृष्टि कोइक जीवने सम्यकत्व- पण कारण बने छे. तेथी तेनु मिथ्याश्रुत पण कदाचित् सम्यक्श्रुत बने छे.
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॥३१॥
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