________________
नन्दिसूत्रम् । ||३३||
Jain Education International
त्यारबाद उत्कालिकमा दशवैकालिकादि २९ सूत्रनी २९ भेद बताया छे. अन्य प्रकीणर्क (ग्रंथो) नी देव तीर्थंकर भगवंतना शासनमां ८४००० प्रकीर्णक
गणत्री करावी छे, अने कालिकमा उत्तराध्ययनादि संख्या बतावतां जणावे छे के, प्रथम तीर्थपति ऋषभहता अने प्रभु महावीरना शासनमां संख्यात सहस्र [ पोताना शिष्यनी संख्या जेटला ] प्रकीर्णको होय छे. अथवा तो जे तीर्थंकर प्रभुना जेटला शिष्यो चार बुद्धिथी युक्त होय तेटला प्रकीर्णक - सहस्रो तेमना शासनमां होय छे. त्यारबाद विस्तृत वक्तव्यवाळा छेल्ला भेदमां अंगप्रविष्टमां १२ अंगनी गणत्री कर्या बाद ११ अंगनो विस्तारथी परिचय आपे छे. १२ मा अंगनो परिचय आपतां दृष्टिवादना पांच भेद बतावे छे. [१] परिकर्म [२] सूत्र [३] पूर्वगत [४] अनुयोग [ ५ ] चूलिका. ते परिकर्मना ७ भेद बताव्या छे. त्यारबाद साते सातना अनुक्रमे १४, १४, ११, ११, ११, ११, ११ भेद बतावेला छे. आ साते परिकर्ममां आजीविकामतनो विचार छे. अने तेमां प्रथम छ परिकर्म चार नयथी युक्त छे अने गोशालके प्रवर्तावेला त्रिराशी [जीव, अजीव, जीवाजीव- नोजीव ] नुं निरूपण करनार छे. त्यावाद सूत्रना २२ भेद बतान्या छे, तेना माटे जणावे छे के, पूर्वगतना १४ भेद बतावे छे.
१ उत्पाद पूर्व
२ अग्रायणीय ६ सत्यप्रवाद
ज्ञानप्रवाद
३ वीर्यप्रवाद
७
आत्मप्रवाद
For Private & Personal Use Only
४ अस्तिनास्तिप्रवाद ८ कर्मप्रवाद
प्रस्तावना |
॥३३॥
www.jainelibrary.org