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नन्दिसूत्रम् ।
॥२०॥
[१] आनुगामिक [२] अनानुगामिक [३] वर्धमान [४] हीयमान [५] प्रतिपाति [६] अप्रतिपाति. आनुगामिकनो अर्थ पाछळ जनार छे. आ ज्ञान जे प्राणीने उत्पन्न थाय छे तेने सदैव तेनी साथे रहेनारु होय छे. तेथी
GL प्रस्तावना। आनुगामिक अवधिज्ञान कहेवाय छे. तेमां पू. हरिभद्र सू. म. लोचन- दृष्टांत आपे छे. पछी तेज अवधिज्ञानना वे भेद पाडया छे. [१] अंतगत अने [२] मध्यगत. तेमांना प्रथमनो परिचय आपतां जणावे छ के, [१] अहीं सकल जीवमा उपयोग होवा छतां पण साक्षात् आत्माना एक देशथी (छेडाथी) वस्तुनुं ग्रहण थतु होवाथी आत्मा आत्मप्रदेशान्तगन्त छे. [२] अथवा औदारिक शरीरनी अपेक्षाए एक देशथी छिडेथी] वस्तुनु ग्रहण थतु' होवाथी औदारिकशरीरान्तगत छे. [३] अथवा ते अवधिज्ञानी यथोक्त प्रकाशित क्षेत्रना अंतमा रहेल होवाथी क्षेत्रान्तगत अवधि छे. अर्थात् आत्मप्रदेशान्तगत, औदारिकशरीरान्तगत तेमज क्षेत्रान्तगत एम त्रण अर्थ अन्तगतथी समजवा. तेवी ज रीते मध्यगतना पण त्रण अर्थ समजवा. [१] आत्मप्रदेशमध्यगत [२] औदारिकशरीरमध्यगत [३] अने तेना प्रकाशित क्षेत्रना मध्यमां (ते व्यक्ति) रहेली होवाथी प्रकाशित-क्षेत्रमध्यगत. त्यारबाद आनुगामिक अंतगत अवधिज्ञानना त्रण भेद दृष्टांत सहित बताव्या छे. [१] पुरतः अंतगत [२] मार्गतः अंतगत [३] पार्श्वतः अंतगत [१] तेमांनु प्रथम दृष्टांत आपे छ के जेम चुडलिकादि प्रकाश आपती वस्तुने आगळ लइने चालतो मनुष्य ||
॥२०॥ आगळनो प्रदेश जोइ शके छे तेम. आ अवधिज्ञानवाळो मनुष्य आगळना प्रदेश (क्षेत्रने) जाणी शके छे.
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