________________
,
नन्दिसूत्रम् ।
॥२१॥
प्रस्तावना।
[२] तेवी ज रीते बीजो अवधिज्ञानी पाछळ चुडलिकादिने लइने चालता मनुष्य जेवो छे. [३]. अने त्रीजो अंतगत अवधिनो भेद बाजुमा चुडलिकादिने लइने चालता मनुष्य जेवो छ
ज्यारे मध्यगत (आनुगामिक) अवधिज्ञानवाळो प्रदीपादिनी सामग्रीने मस्तक उपर लइने चालता मनुष्य जेवो छे. जेथी तेओना ज्ञानना क्षेत्रमा पण तेवो ज फेर पडे छे. ते आगळना सूत्र द्वारा जणावे छे. पुरतः अंतगत, मार्गतः अंतगत, पार्श्वत: अंतगत अने मध्यगत अनुक्रमे आगळ रहेला, पाछळ रहेला, बाजुमा रहेला तेमज चारे बाजुना, संख्यात के असंख्यात योजनने जाणी शके छे. अहीं 'जाणइ पासई' प्रयोग नोधवा योग्य छे. आम आनुगामिक अवधिज्ञान- वर्णन पूर्ण करे छे. त्यारबाद बीजो भेद अनानुगामिक छे. तेनो परिचय आपे छे. जेम सांकळे बांधेलो दीवो ज्यां रहेतो होय त्यां ज प्रकाश आपे छे, तेम आ अवधिज्ञानीने जे क्षेत्रमा अवधिज्ञान उत्पन्न थलु होय, त्यां आवे त्यारे ज तेने तेटला क्षेत्रनुं (क्षेत्रमा रहेला पदार्थोंर्नु) ज्ञान थाय छे. ।।
अहि आपेल औदारिकशब्द पण एम सूचवतो मालुम पडे छे के आ भेद औदारिकशरीरवाळाने लागु पडे छे. अन्यत्र जाय तो ते अवधिज्ञानथी ज्ञान थाय नहीं. माटे ज तेने अनानुगामिक अर्थात् पाछळ नहीं जनारु कहेवामां आव्यु छे. तेमां हेतु आपता पू. हरिभद्रसूरीश्वरजी म. जणावे छे के 'तदावरणक्षयोपशमस्य तत्क्षेत्रसंबन्धसापेक्षत्वात् ' अर्थात् तेनो (अवधिज्ञान-अवधिदर्शनावरणनो) क्षयोपशम ते क्षेत्र साथे सापेक्ष होवाथी आम बने छे. [३] ते पछी वर्धमान अवधिज्ञान- वर्णन छे.
॥२१॥
Jain Education International
For Private & Personel Use Only
www.jainelibrary.org