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नन्दिसूत्रम् ।
॥१६॥
होय तो बनी शके नहीं. साक्षात् ज्ञान करनार तो रह्यो नहीं तो पछी स्मरण केवी रीते थाय ?
घरनी बारीमांथी जोनार मनुष्य बारी लूटी गया पछी त्यां नूतन बारी मुक्या पछी पण ए बारी | IIGI प्रस्तावना। द्वारा अनुभूत पदार्थ- स्मरण सारी रीते करी शके छे. पण (मनुष्य विना) बारी पदार्थडे स्मरण करी शके ज नहीं. ज्ञान गुण ए आत्मानो गुण छे. अने इन्द्रियो बारीनी जेम साधन छे. पण प्रमाणरूप नथी. इन्द्रियज्ञाननो मति अने श्रुतमा अंतर्भाव करवामां आवेलो छे. एटले मति अने श्रुत ए परोक्ष छे. ज्यारे अवधि आदि प्रत्यक्ष छे. जे ज्ञानमा आत्माने इन्द्रिय आदि साधनोनी मदद लेवी पडे नहीं, ते ज्ञानने प्रत्यक्ष कहेवामां आवे छे. अर्थात् सीधो आत्मा ज ज्ञान करे तेवा ज्ञानने प्रत्यक्ष कहेवामां आवे छ अने जेमां इन्द्रिय आदिनी मदद लेवी पडे तेने परोक्ष कहेवामां आवे छे. अहीं अक्ष एटले आत्मा लेवानो छे. तेथी चक्षु आदि इन्द्रियो प्रमाण बनी शके नहीं, छेवटना सर्व दर्शनकारोने ज्ञान करनार आत्माज छे एम तो मानवुज पडे छे. आंख खेंच्या पछी पण चक्षु द्वारा मेळवेल ज्ञान- स्मरणं करनार आत्मा छे. माटे तेनो अनुभविता आत्मा ज छे. इन्द्रियोनो सनिकर्षादि आलोक आदिनी माफक साधन छे. आथी तेने प्रमाण कहेवाय नहीं. आज वस्तुनुं न्यायनी दृष्टिए विशद वर्णन विशेषावश्यकनी स्वोपज्ञ टीकामां तेमज पू. मलधारी हेमचन्द्र महाराजनी ते परनी टीकामां छे. ते वधु जाण
॥१६॥ वानी इच्छावाळाए त्यां जोइ लेवु.
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