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________________ ना प्रस्तावना। नन्दिसूत्रम् । ॥१२॥ वळी तेओए दुष्यगणिने आपेला विशेषणो अन्यने अपायेला विशेषणोथी घणां ज विलक्षण छ. जेमके:[१] 'पयईइ महुरवाणि' प्रकृतिथी मधुरवाणीवाला. [२] 'सुकुमालकोमलतले' सुकुमाल अने कोमल तलवाळा. अहिं आ विशेषणोथी चूर्णिकारनु कथन हशे के 'गुरखोत्ति का बहुवयणं' अर्थात् दुष्यगणि (तेमना) देववाचक गणिना गुरु छे. माटे बहुवचननो प्रयोग कर्यों छे. [६] अहीं जैन शासननी विशिष्ट परंपरा अनुसार अधिकारीओनो विचार १३-१४ दृष्टांत आपी स्पष्ट करेल छे. अने ते बाद (१) समजु (२) अणसमजु अने (३) दुर्विदग्ध एम त्रण प्रकारे पर्षदाना पण भेद बताव्यो छे. ज्ञाननी प्ररूपणानी प्रतिज्ञानी पछी अने ज्ञानना निरूपण पहेला अधिकारीओनो विचार खूब मननीय छे. 'पणतं' ए मूळसूत्रमा रहेला शब्दना करेला घणा अर्थोमां एक अर्थ 'अहवा पण्णा -बुद्धी पहाणपण्णेण अवाप्तं, पण्णत्तं सम्मद्दिविणा लब्धमित्यर्थः' (पृ. २०पं. ५) तेना अनुसार अहीं सम्यगदृष्टिना ज्ञानविवेचन छे, तेम जणाय छे. अहीं क्रम सर्व शास्त्रना जेवो छे. ते क्रम शा माटे आवी रीते राखवामां आव्यो छे, तेनो चूर्णिकार तेमज टीकाकारे खुलासो आप्यो छे. [१] मति अने श्रुतज्ञानमां स्वामिकाल-कारण-विषय अने परोक्षत्वनुं साधर्म्य छे. [२] मति श्रुत अने अवधिज्ञानमां-काल-विपर्यय-स्वामि अने लाभर्नु साधर्म्य छे. [३] अवधि अने मनःपर्यवज्ञानमा छद्मस्थ-विषय-भाव-प्रत्यक्षत्व अने स्वामिरूप साधर्म्य छे. [४] मनापर्यव अने केवलज्ञानमां-अप्रमत्तस्वामित्व अने विपर्ययाभावरूप साधम्र्य छे. ॥१२॥ Jain Education International For Private Personal Use Only Mw.jainelibrary.org
SR No.600097
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size14 MB
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