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इन्दिसूत्रम् ।
प्रस्तावना।
॥१०॥
[C] जेमां नियमरूपी सुवर्णना शिलातलोमां, प्रतिसमय कर्मनो नाश करतां होवाथी उज्ज्वल चित्त(मन)रूपी कूटो छे.
I [D] ते संघ पर्वतमां संतोषरूपी मनोहर नंदनवन छे. जे नंदनवन शीलरूपी सुगंधीथी महेकायमान थइ रहथु छे. [E] ते पर्वतमां सेंकडो हेतुरूप धातुओ रहेली छे. वळी ते पर्वतनी गुफामां अनेक आमशौषध्यादिरूप दिव्य
औषधो छे. तेमज श्रुतरूप चन्द्रकान्तादि रत्नो क्षायोपशमिकादि भावने वहावी रह्यां छे..... [F] ते पर्वतमा जीवदयारूपी सुन्दर रकंदराओ छे. ज्यां मुनिवररूपी दर्पित सिंहो विचरी रह्या छे. [G] वळी जे पर्वतमा संवररूप जलमांथी श्रुतज्ञानरूप झरणां निकळी रह्यां छे. अने ते झरणारूप मोतीना हारथी
ते पर्वत शोभी रह्यो छे.. [H] वळी ते पर्वतनी ३कुहरो श्रावकजनरूपी रणकार करता प्रवर मयूरोथी नाचती होय तेम लागे छे. [I] वळी ते संघरूपी पर्वतमा युगप्रधानरूप महापुरुषो विनयथी नमेला श्रेष्ठ मुनिरूप विद्युतना चमकाराथी ओळखाइ रह्या छे.
. [D] वळी ते संघरूप मेरुपर्वतमां (मुनिओना) गच्छरूप वनो छे. जे वनोमा रहेलां मुनिरूप वृक्षो उपर लब्धिरूपी
१ 'देवखातबिले गुहा' देवखातो अकृत्रिमो बिले बिलविषये (अमरकोशः) । २ 'दरी तु कन्दरा पर्वतस्य गृहाकार कृत्रिम विवरम्' (अमरकोश:) AII ३ 'कुहर शुषिरं विवरम् ' इत्यादि छिद्रमात्रस्य (अमरकोशः)।
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